जातिवर्गों का विकास | Jaativargon Ka Vikas

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उमाशंकर - Umashankar

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सर चार्ल्स डार्विन - Sir Charls Darvin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ जातिवगों का विकास परिवर्तन कहीं अधिक होते हैं और कदाचित्‌ हमारे पालतू भेदों के निर्माण में इन्होंने कहीं अधिक भाग लिया है। हम छोटी-मोटी अनन्त विचित्रताओं में अनिश्चितू परिवर्तन देखते हैं जो एक ही जाति-वर्ग के व्यष्टियों में भेद करते हैं और उन्हें उनकी वंशागति एवं दूर के पूर्वजों से सम्बद्ध नहीं किया जा सकता। बहुधा एक ही झोल (एटा) के शावकों और एक ही फ के विभिन्न बीजों से उगे बीजांकुरों में महत्व- पूर्ण परिवतंन दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी लंबी अवधियों के बाद एक ही स्थान पर रहने वाले तथा एक ही आहार पाने वाले लाखों व्यष्टियों में कुछ व्यष्टि इतने भिन्न उत्पन्न हो जाते हैं कि उनको विरूपताएँ या भयंकरताएँ (0०0०5६१९०४३ए८४) कहा जाता है। पर ध्यान रखना चाहिए कि हम विरूपता को छोटे-छोटे परिवतंनों से बिल्कुल ही पृथक नहीं कर सकते। वास्तव में संरचना के ऐसे सभी परिवतन-- चाहे वे छोटे हों या बड़े--जो एक साथ रहने वाले अनेक व्यष्टियों में से कुछ में उत्पन्न होते हैं उन व्यष्टियों पर परिस्थिति का अनिद्चित प्रभाव कहे जा सकते हैं। यह प्रभाव लगभग उसी प्रकार का है जंसे ठंडक लगने पर मनुष्यों पर उनके शरीर की हालत बनावट आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रभाव होते हैं जैसे किसी को उसके कारण सर्दी-जुकाम किसी को अंगों की सुजन और किसी को गठिया होती है। जननांगों के प्रभावित होने के कारण बदली हुई परिस्थिति की परोक्ष क्रिया के संबंध में हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यह क्रिया दो प्रकार से होती है। _ पहले कि ये अंग परिस्थितियों में हुए किसी भी परिवतंन की ओर बहुत ही सचेतन हैं अर्थात्‌ उसमें सुक्ष्म अन्तर होने पर भी ये प्रभावित होते हैं और दूसरे समानता से-- जेसा कलरायटर (ह०//6०६७८०४) आदि ने पहले कहा है कि दो पृथक्‌ जातों (56८८४) के संकरण (०८४९०४४ण०४) से उत्पन्न हुए परिवर्तन तथा नयी अथवा कृत्रिम दशाओं में रखे गये पौधों और जन्तुओं में उत्पन्न हुए परिवतंन बहुत कुछ समान होते हैं। कई बातों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि जनन संस्थान वातावरण की दवाओं में सूक्ष्म परिवतंनों के लिए भी ग्रहणक्षम हैं। किसी जन्तु को पाछतू बनाना सबसे अधिक सरल है। फिर भी बंदी अवस्था में वे बच्चे दें इससे कठिन कुछ भी नहीं-- चाहे नर और मादा का समागम भी हो चुका हो। कितने जानवर ऐसे हैं जो लगभग अपने प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्रतापूर्वक रखे जाने पर बच्चे नहीं देंगे। सामान्य- तया इसका कारण दूषित प्रवृत्ति बताया जाता है पर यह भ्रम है। कृषि द्वारा तेयार किये हुए बहुत से पौधे असीम दाक्ति दिखाते हैं लेकिन बीज नहीं पैदा करते या केवछ कभी-कभी करते हैं। कुछ उदाहरणों में तो यहाँ तक देखा गया है कि किसी बहुत छोटे परिवतंन पर ही यह निभेर होता हैं कि पौधे बीज उत्पन्न करेंगे या नहीं जैसे




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