हमारे संत | Hamare Sant

Hamare Sant by रघुवीर शरण - Raghuveer Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का गन पल फिकला डक शिफार्श क कर पिन स्द मा जप सन्तें नामदेव श्दे एक बार नामदेव जी किसी गाँव के वर्षों से बन्द सूने मकान में ठहरने लगें। लोगों ने मना किया न्ौर कहा-- इसमें एक सयकर भूत है वह इस घर में ठहरने वाले कितने ही लोगों को खा चुका है। वह ब्रह्मराझषस बड़ा खूनी है 1 इस पर नामदेव जी ने कहा-- सेरे विट्रल हो तो भूत भी बते तोंगे । श्रौर फिर उस मकान में अकेले ठहर गये प्राघी रात को बहू भयकर भून प्राया। उसका शरीर बड़ा भारी था। बह लम्बी चौड़ी विकराल प्रेततात्मा देख नामदेव जी भाव-मग्न होकर नुस्य करने श्र गाने लगे-- भले पघारे लम्बक साथ घरनी पाँब स्वर्ग लौ माथा जोजन भरके लाँबि हाथ । शिव ससकार्दिक पार न पावें अनशणित साज सजाये साथ । नामदेव के तुम ही स्वामी कीजे प्रभु जी मोहि सनाथ ॥ भगवान की भक्ति के सामने भला कहीं प्रेत का प्रेनत्व ठहर मकता है बह भयावनी शाकृति सखि-चक-सदा-पदधारी श्री पाण्डुरंग जी में बदल गई। उस दिन से फिर उस घर में वह ब्रह्म- ग्क्षस नहीं रहा 1 ऐसे ही एक बार नामदेव जी जंगल में रोटी बना रहे थे | रोदी बनाकर भोजन करने के हेतु लघुशंका भ्रादि से सिवुस होने गये । जब लौटे तो देखते कया हैं कि एक कुत्ता मुँह में रोटी दबायें भागा जा रहा है। नामदेव जी थी की कटोरी लेकर उसके पीछे यह कहते हुए दौड़े-- प्रभु ये रोटियाँ रूखी हैं श्री लगा लेने दीजिये । फिर मोग लगाना । इस भवित भावना से ध उस




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