गाँधी जी | Gandhi Ji

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Gandhi Ji by महादेव देसाई - Mahadev Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वे विनोबा के विचार कही-- जिसका मन बिलकुल साफ हो वह पहला ढेला मारे । जमात जरा देरके लिए ठिठक गई । फिर धीरे-धघीर वहांसे एक-एक श्रादमी खिसकने लगा । अंत में वह अभागी बहन और भगवान्‌ इंसा ये दो ही रह गये । भगवान्‌ने उसे थोड़ा उपदेश देकर प्रेमसे विदा किया ।- कहानी हमें सदा ध्यानमें रखनी चाहिए । ब॒रा जो देखन में चला ब॒रा न दीखा कोय । जो घट खोजा आपना मभ-सा बरा न कोय ॥ दूसरी दवा हैं मौन । पहली दवा दूसरेके दोष दिखे ही नहीं इसलिए है । दृष्टि-दोषसे दोष दिखनेपर यह दूसरी दवा अचूक काम करती है । इससे मन भीतर-ही-भीतर तड़फड़ायेगा । दो-चार दिन नींद भी खराब हो जायगी । पर झाखिरमें थककर मन शांत हो जायगा तानाजीके खेत रहनेपर मावले पीठ दिखा देंगे ऐसे रंग दिखाई पढ़ने ल्नगे । तब जिस रस्सीकी मददसे वे गढ़पर चढ़े थे झ्ौर जिसकी मदुद- से अब वे उतरनेका प्रयत्न करनेवाले थे वह्द रस्सी ही सूर्याजीने काट डाली । वह रस्सी तो मेंने कभीकी काट दी है सूर्याजीके इस एक. वाक्यने लोगोंमें निराशाकी वीरश्री पेदा कर दी झऔर गढ़ सर हो गया ४ रस्सी काट डालनेका तत्त्वज्ञान बहुत ही मददत्वका है । इसपर अलगसे लिखनेकी जरूरत है। इस वक्त तो इतनेसे ही अभिप्राय है कि मौन रस्सी काट देने जेसा है । या तो दूसरेके दोष देखना भूल जा नहीं तो तड़फड़ाता रह मनपर यह नौबत झ्रा जाती है । और यह्द हुआ नहीं कि सारा रास्ता सीधा हो जाता है। कारण जिसको जीना है उसके लिए बहुत समयतक तड़ फड़ाते बैठना सुविधाजनक नहीं होता । तीसरी दवा है कर्मयोगमें मग्न हो रहना । जेसे झाज सूत कातना झकेला ही ऐसा उद्योग है कि छोटे-बढ़े सबको काफी दो सकता है. येसे ही कमेयोग एक ही ऐसा योग है जिसकी सर्वसाधारणके लिए बे-खटके की की जा सकती है । किंबहुना सूत कातना दी श्राजका कर्म- योग है ।




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