व्रज भाषा सूर - कोश खंड - ६ | Vraj Bhasha Soor Kosh Khand - 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37.88 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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डॉ. दीनदयालु गुप्त - Dr. Deenadayalu Gupta
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प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १०१६ ) उ - खंभ फारि हरनायुस मारखों जन प्रहलाद निवाज न १-रप४ । निवाजना - क्रि स हिं निवाज] कृपा करना | निवाजिश---संजा स्त्री. फा.] कृपा दया | निवाजे--वि. हिं. निवाजना] भुग्रह करें कृपा करके अपना लें । उ.--जाकों दीनानाथ निवाज । मव- सागर मे कह न कक असय निसान बाजे---१-३६ ॥ निवाउ्यो निवाज्या-जक्रि. स. हिं. निवाजना| कृपा करके झपना लिया । उ --सकटा तुना इनहीं संहारथो काली इनहिं निवाज्यो--र८१ | निवाड़--संज्ञा ख्री. फा नवार मोटे सुत की बिनी पट्टी | निवान--रंन्रा पं. सं. निम्न] भुकाता नीचे करना | निवार--संशा पुं. सं. नीवार्] तिन्नी का घान पसही | निवारक--संन्ा पूं. सं.] (१) रोकनेवाला । (२) सिटाने या नष्ट करनंवाला | निवारति--क्रि. स. हिं. निवारना] दूर करतो है मिटाती है । उ --कमकि उठधो सोवत हरि श्रबह्दीं (जसुमति) कु पढ़ि पढ़ि तन-दोष निवारति--१०-२०० । निवारण निवारन--संज्ञा पं. सं. निवारण] (१) रोकने की क्रिया | (२) सिटाने हटाने था दूर करने को (३) छुटकारा निवृत्ति । (४) निवृत्ति या छुटकारा दिलानेवाला | उ --तीनि लोक के ताप- निवारन सूर स्याम सेवक सुखकारी--१-३० (४) हटाने दूर करने या मिटाने के उद्दे्य से । उ.-- श्रजिर चली पछ़िताति छींक कौ दोष निवारन--श८६ | निवारना--किं. स सं. निवारण] (१] रोकना हटाना । (२) बचाना । (३) तिषेघ या सना करना । निवारहु- कि. स. हिं. निवारना रोको दूर करो हटाशो छोड़ो । उ.--लेह मात सहिदानि मुद्रिका दई प्रीति करि नाथ । सावधान है सोक निवारहु त्रोढ़हु दच्छिन हाथ--£-दरे । निवारि--किं. स हिं. निवारना छोड़कर रोककर त्यागकर | उ.--पनी रिस निवारि प्रमु पिंठु मम अपराधी सो परम गति पाई--७१४ | निवारी--करि. स हिं. निवारना (१) हदायी दूर की नष्ट की | उ.--(क) लाखा-गह तैं सच -सेन तें पांडव-बिपति निवारी--१-१७ 1 (ख) सरनागत को ताप निवारी--१-रद। (१) त्याग दी छोड़ दी ॥ उ --रावन हरन सिया कौ कीन्हों सुनि नँंदनंदन नींद निंवारी --१०-१६८ ग्र.--सके निवारी-हदा सकता है रोक सकता है । उ.--कबहूँ जुाँ देहिं दुख मारी 1 तिनकों सो नहिं सके निवारी--३-१३ | संज्ञा स्त्री | सं. नेपाली जूही की जाति का एक पौधा या उसका फूल जो सफेद होता हैं । निचारे-क्रि. स. हिं. निवारना (१) दूर किये नष्ट किये हटायें । उ.--सूरदास प्रभु श्रपने जन के नाना तास निवारे-- १-१० | (२) रोक दिये काट दिये ।॥ उ.- रुक्मिनी मय कियो स्याम धीरज दियो बान से बान तिनके निवारे--१० उ०-२१ | क निवारें--कि. स. हिं. निवारना] रोकें मना करें | उ--- पुनि जब पष्ट बरप कौ होइ । इत-उत खेल्यो प्वाहै सोइ । माता-पिता निवारें जबहीं । मन मैं दुख पावँ सो तबहीं- रे-१३ निवारे--क्रि. स. हिं. निवारना छोड़ती या त्यागती हूँ । उ.--जब तैं गंग परी हरि-पग ते बहिबों नहीं निवारे-३१८६ । निवारों--कि स. हिं निवारना दर कहूँ हटाऊँं नाश करूँ ) उ.---करों तपस्या पाप निवारों--१-२३१ । निवारौ--क्रि. स. हिं. निवारना (१) दूर करो । उ.-- प्रभु मेरे गुन-भ्रवगुन न ब्रिचारो । वीजें लाज सरन त्राए की रबि-सुत ज्रास निवारे--१-१११ । (२) मिटाया हटाया दूर किया । उ.--(क) कियौ न कहूँ बिलंब कपानिषि सादर सोच निवारी--१- १५७ | (ख) द्ंबरीष कौ साप निवारौ--१-१७२ । निवारयी--क्रि. स. | हिं. निवारना मिदाया हटाया दूर किया । उ.--मयो प्रसाद जु श्रंबरीष कौ दुखासा कौ क्रोध निबारयौ-- १-१४ । (९) दूर किया हटाया । उ.--सतगुरु को उपदेस हृदय धरि जिन अम सकल निवार्यो--१-३३६ । (३) बचाया रक्षा की | उ.--मेघ बारि तें हमें निवास्यी--३४०६. | निवाला--संश पूं. फा कौर ग्रास ।
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