आधुनिक अर्थशास्त्र | Aadhunik Arthshastra
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75.5 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. आर. एन. भार्गव - Dr. R. N. Bhargav
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पी. सी. जैन - P. C. Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथंद्यास्त्र की परिभाषा और उसका क्षेत्र ७ ं इन आचरणों का अध्ययन वह इस दृष्टि से करता है कि वस्तु के अभाव का उन आचरणों पर क्या प्रभाव पड़ता है। यदि प्रत्येक वस्तु अपार मात्रा में मुफ्त ही मिल सके तो अथेशास्त्र कर आवश्यकता ही नहीं रह जाती क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई समस्या ही नहीं होती। परन्तु संसार मे सब वस्तुएं और सेवाओं को प्राप्त करने के लिए उद्योग करना पड़ता हूैं। इसी कारण प्रत्येक मानवी आचरण अभाव से प्रभावित .रहता है । यदि मनुष्य एक समय में एक कार्य करता है तो ८कके मे स्प समय नहीं कर सकता । इस कारण उसको यह निर््चित करना पड़त। है कि वह कौन से कार्य॑ करे और कौन सी आवश्यकताओं की पूर्ति करे जिससे उसको अधिकतम सुख प्राप्त हो। यह कहना भूल है कि कुछ मानवी आचरण आथिक होते हैं और कुछ नहीं होते। वास्तव में प्रत्येक मानवीय आचरण का आर्थिक पक्ष भी होता है जिस प्रकार उसी आचरण के राजनैतिक धार्मिक सामाजिक ऐतिहासिक कानूनी इत्यादि पक्ष भी होते हैं। अथेशास्त्र में हम प्रत्येक आचरण का एक ही पक्ष से अध्ययन करते हूँं। इस कारण केवल अर्थशास्त्र का अध्ययन मानवी आचरणों का बिल्कुल अपूर्ण अध्ययन है। उन आचरणों के सब पक्षों का अध्ययन करने के लिए विभिन्न विज्ञानों का अध्ययन करना आवश्यक है तभी हम मनुष्य के आचरणों के सम्पूर्ण पक्षों का अध्ययन कर सकते हैं। इस कारण यह॒ कहना गलत है कि यदि कोई व्यक्ति अपने प्रयोग के लिए धन कमाता है तो उसका अर्थशास्त्र में अध्ययन होता है और यदि पं ० जवाहरलाल नेहरू या गांधी जी देश की सेवा के लिए का्यें करते हें तो उन कार्यों का अध्ययन नहीं होता या जब कोई व्यक्ति ई्वर-भक्ति करता है तो उसका अध्ययन नहीं होता। अर्थशास्त्र में इन सब आचरणों का अध्ययन होता है परन्तु उनके आर्थिक पक्ष का ही। प्रत्येक व्यक्ति ( चाहे देशभक्ति से या ईदवर-भक्ति से या धन कमाने से ) अपनी विभिन्न रीतियों से पूर्ण सुख प्राप्त करना चाहता है। महात्मा गांधी देशसेवा इसलिए करते थे कि उनकी देशसेवा की आवश्यकता की पूति हो और उस पूर्ति से उनको सुख प्राप्त हो। इसी प्रकार जब कोई मनुष्य ईदवर-भक्ति करता है तो वह भक्ति इसी कारण करता है कि ही दा कु द् ८ 7 कर्क सका सकमुकुर की गा रु .. गया का समस्या का सामना करना पड़ता है । क्योंकि उनको भी यह निश्चय करना पड़ता है कि वह अपने सीमित साधनों से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार करें। इस कारण पशजओं के आचरणों के अध्ययन का भी एक नवीन अर्थशास्त्र विज्ञान में अध्ययन हो सकता हैँ।
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