छत्रप्रकाश | Chhatraprakash

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कृष्ण बल्देव वर्म्मा - Krishn Baldev Varmma

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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ दाह । भाष्यो जात न जासु जस ऐसे उदित दिनेख त्पके भयो महा बली मजे उद्दड नरेख ॥ ५ ॥ उन्द मच॒ अनेक मानस उपजाये । याते सानव मनुज कहाये ॥ खरनें ताके बंस कहाँ लीं । जगत बिदित नरलोक जहाँ लो ॥ तिन में छिति छत्री छवि छाये । चारिडह जुगन हात जे आये ॥ भूमि भार भुजदंडनि थंभे | पूरन करे जु काज अरंगे ॥ गाइ वेद दुज के रखवारे | जुद् जीत के देत नगारे ॥ परम प्रचीन प्रज़्न के पाले । भोर परे न. हलाये दाले ॥ दान हेत संपत्ति के जारे । जस हित परनि खग्ग गहि तारे ॥ खांह छांह सरनागत राखे | पुन्थ पंथ यढिवो अशिछाषे ॥ दादा । प्रगट भयो तिहि बंस में रामचंद्र अवतार | सेतु बांधि के जिन कियो दसमुख कुल संघार ॥ ६ ॥ उन्दू | रामचंद्र के. पुत्र सुहाये । कुस लव भये जगत जे गाये ॥ कुस कुछ कछस भये छवि छाये । अवधि पुरी नृप घने गनाये ॥ विन में दानजूक सिरताजा । हरित कुलथंमन. राजा ॥ दरित्रह्म कुछतिलक प्रवीनै । महीपाठ जस जाहिर कीने ॥ मद्दीपाठल उद्दित सुत पाये । नूप-कुछ-मनि. सुवपाल कहाये ॥ तलिनके कमल चंद जग जानै । सुरन के. सिरमोर बखाने ॥ तिनके. चिश्रपाल मरदाने । बुद्धिपाल जिन सख़ुत उर आने ॥ मंद ॒ विहंगराज तिन जाये । अवधि पुरी नुप सात बताये ॥ १---संगारे न डका । र--गाये प्रख्यात हुए ।




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