अवधी और उसका साहित्य | Avadhi Aur Usaka Sahitya

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क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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त्रिलोकीनारायण दीक्षित - Trilokinarayan Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्रवघी भाषा. श्र एक वचन मविष्यत्‌ क्रिया के श्रन्त में होता है। उदाहस्णा्थ ज इरैं करिहें सोचिहें मरिहें । परन्तु पूरबी अवधी मैं पहले अन्त मैं हि होता है था जाइहि करिहि सोचिहि सारिहि आदि । क्रमशः यह हि अब इ मैं परिवर्तित हो गया है। उदादस्णाथ जाई करी सोप्ची मार आदि । थ आगे. कारक-चिह्न या. दूसरी क्रिया लगने. पर खड़ी बोली और ब्रज के समान पच्छिमी शवधी मैं नान्त रूप रहता है जेसे ्रावनकाँ (पुराना रूप त्रावनकहँँ ) करन माँ? (पुर करन महूँ ) श्रावन लाग इत्यादि । पर . पूरबी . श्रवधी में कारक-चिह्न या दूसरी क्रिया संयुक्त होने पर साधारण क्रिया का रूप नहीं रहता वर्तमान का तिंडन्त रूप हो जाता हे जैसे वे का जाय माँ ? करें का वें लाग । - करण के च्विह्न के प्रहले पूरी और पच्छिमी दोनों अवधी भूत कृदन्त का रूप घर लेती हैं जेसे ्राए से चलें से झाए सन दिए सन? । संयुक्त क्रिया के . प्रयोग मैं ठुलसीदास जी.ने यह विलन्तणुता की है कि एक वचन में तो. पूरबी अ्वधी का रूप रखा हैं श्रौर बहु वचन में पच्छिमी अवधी का जेसे-- कहइ लाग कहन लागे । ल्‍ दब क्रियाओं के भूतकालिक रूप विचास्णीय हैं । . विशुद्ध अवधी मैं भूतकालिक क्रिया का आ्राकासान्त रूप प्रायः सकमंक उत्तम पुरुष बहु वचन मैं होता है और प्रायः श्रकर्मक पुरुष एक वचन मैं यथा-- हम खावा यह पावा ऊ लावा । परन्तु अवधी के साहित्यिक रूप में श्राकारान्त भूत- कालिक रूपों का पुरुष-मेद-विहीन प्रयोग मिलता हैं । सामान्यतया त्वधी क्रिया का. रूप कर्ता के पुरुष लिंग और बचन के श्रनुसार रहता है । अ्वधी में क्रियाओं का भूतकालिक अन्त वा में होता है यथा लावा पावा पगावा । इसके विपरीत खड़ी बोली मैं अन्त या में होता है यथा-- लाया पाया गाया? । . सामान्यतया पूरबी त्रौर पछाँही हिन्दी में निम्न लिखित विशिष्ट मेद उपलब्ध होतें हैं-- दा मक .




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