श्रीसूक्त और स्तोत्रों का आलोचनात्मक अध्ययन | Shrisukta Aur Stroto Ka Alochanatmak Adhayan

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Shrisukta Aur Stroto Ka Alochanatmak Adhayan by स्नेहलता दुबे - Snehlata Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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िवस्तृततम यर्थ में धर्म के अन्तर्गत एक ओर सती दिव्य जघवा अलोकिक शीक्तयो के प्रीति मनुष्य को धारणायेँं आतो हैं ओर दूसरी ओर इन रक्तयो पर पिनर्थथ मानव कल्याण की मह भाप आयी है जो रविीभनन उपाधना पद्तयो मैं व्यक्त होती दे । विभिन्‍न देवता एक ही दिव्य सत्ता के िफीवध स्प मैं । वीदक का पिस देवता कोन का आधनान करते हैं उसके स्तपनम लीन हो जाते हैं आर उधके गु्णी की पराका०्ण तक पहुँचा देते ४ । देयता को सरवाातययों दिव्य गुणों वाला देखे लगते हैं जर उप समय उसे दा सर्वोध्च देका मानने लगते हैं । कभी-कभी देवताओं का आध्वान युगलों में नयी में ओर कभी-कभी इतते भी यड़े बृन्दो में उन्दें एक मानफर फिया गया हे । देवताओं का शारीरिक ८ाँया मानवीय दे पकिन्तु उनका यह ल्प कुछनकुछ नीडार था छायात्पक हा है । चहुधा पता थनता है दिकि उनके शारोरिक जवयव प्रकीत के दृश्यों और पक्ष औोधों पर आधारित दे । देवता लोग अपने दाथो देत्यों को दरा करके अपने मेत्रते स्वरूप को मानव-समुदाय के सम्युख छा स्थापित करते हैं । देवताओ को कृपा दृष्टि भी तो मलुध्यों की कृपा दृष्टि की सर ही है । वीदक देवताओं का चाििन नातिक दे सभी देवा धोखे थे दूर रदते हैं सत्यवादी शेते हैं कर्तव्यानिज्ठ हैं . दमेशा बब्चे हमर के सरक्षक हैं थे बुरे कर्म करने वालो पर देफता क्रॉधि। बीते है ।. यहां तक कक वोदक धर्म के अन्तर्गत आकाश पृथ्वी पर्कत नदियों पेड़-पौधो तथा पशु का भी आददवान किया गया है ।




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