संस्कृत - काव्यशास्त्र में प्रतिपादित रस - दोष | Sanskrit - Kavyasastra Me Pratipadit Ras - Dosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.38 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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निरुपमा उपाध्याय - Nirupama Upadhyay
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रुद्रकान्त मिश्र - Rudrakant Mishr
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6 मे देवगुरू वृहस्पति को कवियो का कवि अथवा कवियो का नेता कहा गया है। अथर्ववेद मे कवि को ब्रहम के समकक्ष बताकर उसकी काव्य-सृष्टि को अजर-अमर भी बताया गया हैं? ऋग्वेद मे काव्य के कारण कवि को रसस्वरूप (आनन्दस्वरूप) बताकर काव्य कवि व रस का जो समीकरण प्रस्तुत किया गया है उसे परवर्ती काव्य ओर रस-सिद्धान्त के लिए एक प्रामाणिक आधार कहा जा सकता है। ऋग्वेद मे शुूगार आदि रसो के स्थायी भावो का भी यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त उष -सूक्त मे शूगार रस की मण्डूक-सूक्त मे हास्यरस की अक्षसूत्र मे करूण रस की रूद्र-सूक्त इन्द्र-सूक्त पुरूष-सूक्त आदि मे अदृभुत रस की स्थिति स्पष्टत देखी जा सकती है। ऋग्वेद मे अलकार के लिए अरकृत और अरकृति शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। ऋग्वेद मे ऐसे अनेक मन्त्र हैं जिनमे एकाधिक अलकार एक साथ देखे जा सकते हैं। उदाहरणार्थ द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया मन्त्र मे पक्षिद्यय विषयी के द्वारा जीवात्मा और परमात्मा रूप विषय का निगरण होने से रूपकातिशयोक्ति अलकार है। तो दोनो पक्षो मे से एक (आत्मा) के भोक्वृत्व रूप गुणाधिक्य का वर्णन होने से व्यतिरिक अलकार भी है। इसके अतिरिक्त पक्षिद्य रूप अप्रस्तुत के वर्णन से जीवात्मा तथा परमात्मा रूप प्रस्तुत का बोध होने से अप्रस्तुत प्रशसा अलकार भी हो सकता है। इसी प्रकार अनुप्रास यमक श्लेष उपमा अतिशयोक्ति उत्प्रेक्षा विरोधाभास आदि अलकारों के व्यावहारिक प्रयोग भी ऋग्वेद मे मिलते हैं। ऋग्वेद मे धारा मार्ग १... गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कवि कवीनामुपश्रवस्तममृ / जेष्ठराज ब्रहमण ब्रहमणस्पत आ न. जण्वन्यूतिभि सादर । उक्रग्वेद २८/२३/८/१/ रे. पश्य देवश्य काव्य न ममार न जीर्यति / -अधर्ववेद १० ८८//३२/ 5 धनज्जय पवते कृत्व्यो रसो विप्र कवि काव्येन / नक्ग्वेद ६./८८४८५/ द्रष्टव्य ऋण १८/१०० /८७ मे करूण शब्द का उल्लेख १० ८३ /८/१ १० ८६१ /८१ इत्यादि में रौद्र शब्द का उल्लेख १८३०५ १८१८२ आदि मे शौयपित (उत्साहयुक्त) अर्थ मे वीर शब्द का उल्लेख १.८/१०० /८/१७ मे भयानक शब्द का प्रयोय १८८१८ /६. १८/६४ //१२ इत्यादि मे अदृभुत रस का संकेत / 0 द्रष्टव्य ऋण १० १२४ उक सूक्त ७ १०३ मिण्डक-सुकत ) १०३४ (अक्ष-सूक्त) २८३३ रिद्-सुक्त) २८१२ इन्द्र-सुक्त) १० ८१२६ सुबष्टि-सूक्त अथवा नासदीय-सुक््त) १० ८६० (पुरूष-सुक्त) इत्यादि / धर वायवा याहि दर्शते सोमा अरकृता । ऋण १८२८१ का तो अस्त्यरकृति सुकते । ऋण ७ /२६./३1 ७... द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समान वक्ष परिषस्वजाते / तयोरन्य पिप्पल स्वाद्वत्ततघ&८प्पप्/लटिचाकशीति ।/ ऋण १.८६४/२०/ ८..... सोचिननु न मराति नो वयं मरामरे इत्यादि (अनुप्रास) -ऋण १८/१६/८८१० कंकतो न ककतो इत्यादि (थिमक) १.८/१६ /८१। स्क्सुजारि शुणोतु न इत्यादि (श्लिवी ऋण ६ ५५५
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