समकालीन पाश्चात्य दर्शन में नैतिक तर्कना का स्वरुप | Samkalin Pashchatya Darshan Me Natik Tarkana Ka Swaroop
श्रेणी : पश्चिमी / Western, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.09 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राजीव द्विवेदी - Rajeev Dvivedi
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हरिशंकर उपाध्याय - Harishankar Upadhyay
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानने पर चन्द्रमा के दूसरी तरफ चट्टानें है निर्रर्थक है क्योंकि उस समय तक चन्द्रमा पर जाने का कोई साधन नहीं था। अतः व्यावहारिक के साथ सैद्धान्तिक सत्यापन को भी सत्यापन का रूप माना गया। इसी प्रकार यदि निश्चित सत्यापन को ही एक मात्र सत्यापन का स्वरूप माना जाए तो सामान्य कथन निरर्थक हो जाएंगे। सामान्य कथनों का आकार है सभी अ ब हैं। इसका निश्चित सत्यापन तभी संभव है जब सभी अ का इन्द्रिय निरीक्षण संभव हो किन्तु यह संभव नहीं है। अतः श्लिक ने माना कि विज्ञानों के सामान्य कथन निरर्थक हैं यद्यपि विज्ञान के लिये ये महत्वपूर्ण हैं। स्पष्ट है कि यह समाधान उचित नहीं है। एअर ने लैग्केफ टग एण्ड लाकिक के प्रथम संस्करण में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई भी कथन निश्चित या सबल अर्थ में सत्यापनीय नहीं है। उसके अनुसार सभी सार्थक कथन केवल निर्वल अर्थ में सत्यापनीय है। जिस कथन की प्रायिकता इन्द्रिय अनुभव से स्थापित की जा सके वह सार्थक हैं। लैजरोवित्श के अनुसार यदि सबल सत्यापन संभव नही है तो निर्वल सत्यापन निर्रर्थक है। इसके उत्तर में एअर ने अपनी पुस्तक के द्वितीय संस्करण में स्वीकार किया कि मूल प्रतिज्ञप्तियाँ जो केवल संवेदनों का निर्देश करती है सबल अर्थ में सत्यापनीय है तथा सभी वर्णनात्तक कथन निर्वल अर्थ में। इसी बात को एअर ने प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सत्यापन में भेद करके और अधिक स्पष्ट किया। कोई कथन प्रत्यक्ष रूप में सत्यापनीय है यदि वह निरीक्षण कथन है किन्तु कथन परोक्ष रूप से सत्यापनीय है यदि उसे एक या अधिक कथनों से संयुक्त करने पर इस संयुक्त कथन से एक निरीक्षण कथन का निगमन किया जा सके जो केवल जोड़े गये अन्य कथनों से निगमित न हो सके। किन्तु वर्लिन ने दिखाया कि इस संशोधित रूप में तत्वमीमांसा के कथन भी सार्थक हो जाएंगे। अतः एअर ने लैंखेक द्रक एण्ड लाक्कि के द्वितीय संस्करण में इसमें परिवर्तन किया। अब उसका मत है कि अन्य आधार वाक्य या तो विश्लेषणात्मक हों या प्रत्यक्ष रूप में सत्यापनीय हों या स्वतंत्र रूप में परोक्षतः सत्यापनीय हों। किन्तु ए. चर्च ने एक सूत्र दिया (-नि। नि.2) /(नि.3-वा) इस सूत्र में नि| नि एवं नि निरीक्षण कथन हैं एवं एक दूसरे से स्वतंत्र हैं तथा वा. कोई भी कथन हो सकता है। इस सूत्र की सहायता से किसी भी कथन को परोक्षरूप में 14.
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