राग संगीत की उत्पति एवं विकास का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Rag Sangeet Ki Utpatti Awam Vikas Ka Vishleshanatmak Adhyayan

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गीता बनर्जी - Geeta Banrji

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निशा श्रीवास्तव - Nisha Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंतग की व्हदेशी मे सवप्रथम राग शब्द परिभाषिक रूप से प्रयुक्त हुआ हैं। मतगानुसार राग इस प्रकार है. - स्वरवर्ष विशेषेण ध्वनिभेदेन वा पुन रज्यते ये य॒ कश्चितु सराग. सभत सताम॒ अर्थात विशिष्ट स्वर वर्ण (मान क्रिया) से अथवा ध्वाने भंद के द्वारा जो श्न रजन मे समर्थ है वह राग है। या योझ्सो ध्वनि विशेषस्तु स्वरवणष विभूषित रठ्जको जन चित्ताना से च राग उदाहत । अर्थात षडज इत्यादि स्वरा तथा स्थायी इत्यादि वर्णों से विभाषित एसी ध्वनि की रचना जिससे मनुष्य के मन का रजन होता है। उसे मत ने राग कहा है। अन्य विद्वानों ने भी गीत के राग की परिभाषा को भिन्न आर्था में प्रस्तुत किया. है।. कल्लिनाथ ने कश्यप मत से राग परिभाषा को स्वीकार किया है। जो राग स्थायी अरोही अवरोही और संचारी चारों वर्षों से शोभित होता हो वह सब कछ (वर्ष चतुष्टम) जा दिखायी देता हो वो राग है। । -. वृहदेशी पु0 81 श्लोक 280 2. वृहदेशी पु0 81 श्लोक 281




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