भारतीय लोक - विश्वास | Bharatiya Lok Vishvas

Bharatiya Lok Vishvas by आचार्य बलदेव उपाध्याय - Acharya Baldev Upadhyayaकृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay

No Information available about कृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay

Add Infomation AboutKrishndev upadhyay

बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay

No Information available about बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay

Add Infomation AboutBaldev upadhayay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अत्यन्त कठिन कार्य है । इसका कारण यह है कि पचासों ब्र्प पहले प्रकः शित होने के कारण ये ग्रन्थ आजकल दुष्प्राप्य ही नहीं अप्राप्य (आउट आफ प्रिम्ट) भी हैँ । इन ग्रंथों की यदि कट्टी प्राप्ति हो सकती है तो यह किसी प्रसिद्ध लिश्वविद्यलय के विशाल पुस्तकालय में हो सम्भव है । अतः घ्रथमत तो इन ग्रंथों को घाप्त करना हो किन है और यदि सिल शी गया तो इन विशालकाय ग्रंथों का मतन तथा अनुशीलन क्र लोक-विश्वस को ढूँढ़ निका- लना अत्यन्त कठिस है शक उदाहुरण के लिए इनसाइक्लीपीडिया आफ रिलिजन एण्ड एथशिक्स का अध्ययन करने के लिए गांधी पोस्ट ग्रेजुएट कानेज सालदारी जिला साजग्गढ़ में एक सप्ताह तक मुझे प्रवाम करना पड़ा था 1 इस कालेज के विद्वान प्रिस्सिपल डॉ० कुबेर मिश्र की कृपा से ही इन पुस्तकों की प्राप्ति हो सकी कौबेरी छुपा के अभाव में इस पुस्तक का दर्शन को दुर्मभ था । इस ग्रथ के निर्माण में कितनी कषिताइयों और बाधाओं का सामना करना पढ़ा है इसीलिए इस विपय का उल्लेग् करना यहाँ आवश्यक प्रतीत हुआ । मैं उन विद्वानों के प्राप्ति अरनी कतज्ता जाधित करना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ जिनसे इस ग्रंथ के निम ण में सहायता प्राप्त हुई है । जिन आचार्यों तथा मनीधिदों ने इस सम्बन्ध में ग्रन्थों की रचना की है अथवा जिनकी कृंतियों मे शकुन एवं अपशकुन की चर्चा है उनके प्रति अपती बिसझ गरणति ऑपत करना चाहता हूँ । नमो पुर्वेजेश्य कऋषिश्य पथिकुद्भ्प अपने अग्रज पदुमशूषण आचायें पं० बलदेव उपाध्याय के चरणों में अपने प्रणाम को समपित करते हुए उनके अजस्र आशीर्वाद की कामना करती हूँ । पूज्यपाद ने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखने की जो कृपा की है उससे प्रस्तुत पुस्तक को गौरब प्राप्त हुआ है । पितुकल्प पुज्य श्ञाता की कुपा तथा अनवरत प्रेरणा पुबं प्रोत्साहन ही मेरे साहित्यिक जीवन का नल लौर सम्बल है । अत उनके चरणों में बातश प्रणाम दिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वाले तथा सुप्रसिद्ध कला-ममंज्ञ डॉ० जगदीश गुप्त सचिव हिन्दुस्तानी एकेडेभी इलाहाबाद के प्रति अपनी हादिक कुत्तज्ञता प्रकट करता हूँ जिनकी कृपा तथा उद्योग से ही यह ग्रंथ प्रकाश की परिधि में अर सका है । वास्तव में डॉ० गुप्त को ही इस पुस्तक को प्रकाशित करने का श्रेय प्राप्त है। यदि उनका सक्रिय नापूछिनाए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now