सांख्य दर्शन का अद्धैतवादी मूल्याकन | Sankhay Darshan Ka Addhaitvadi Mulyakan

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Sankhay Darshan Ka Addhaitvadi Mulyakan  by प्रेम प्रकाश चन्द्र शर्मा - Prem Prakash Chandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) प्रकार इस मत्र मे जगत्क्तू शक्ति को अजा कहा गया है | इसी प्रकार साख्यमत मे विविध और बहुरूप जगत को एकमात्र प्रकृति से उत्पन्न मानते हुए उसे स्वरूपत उसे त्रिगुणात्मक अथवा बहुविध-स्वगत भेद से. युक्त माना गया है| वैसे ही उक्त मत्र मे भी जगतजननीशक्ति रूप अजा को त्रिविध माना है| स्पष्ट है कि मत्र गे जगत का उपादान कारण प्रकृति को माना गया है ईश्वर को नहीं । साख्मत के इस प्रसिद्ध सिद्धान्त के विषय मे. साख्यसूत्र श्रुतिरापि 1 दखिण ठ 807 मे जिस श्रुति का कथन है । वह आचार्य विज्ञानभिक्षु के मत मे भी सही है। लेकिन शकराचार्य के मत मे अजा शब्द से सार्ख्यमत अभिप्रेत नहीं होता है। यहाँ परमेश्वर से उत्पन्न तेजस जल और पृथ्वी ही चतुर्विध प्राणी समूह को सृष्टि करने वाली अजा है५ और स्पष्ट करते हुए ब्रह्मसूत्रभाष्य५४ मे कहा गया है कि चूँकि छान्दोग्य उपनिषद्‌ मे इन तीनो की उत्पत्ति परमतत्त्व से मानकर इन्हे क्रमश लाल सफेद और काला कहा गया है | अत यही श्वेताश्वर उपनिषद्‌ मे अजामेका लोहित शुक्ल कृष्णम्‌ इत्यादि द्वारा अजा कहा गया है| परन्तु वाध्यार्थ के सम्भव न होने पर ही लक्ष्यार्थ लेना उचित है और न्याय सगत होगा । फिर मायां तु प्रकृति विद्यानन्‍्मायिन तु महेश्वरम्‌ ४५ तथा योमोनियो निमघितिष्ठत्येक ५ इत्यादि मत्रो के द्वारा भी उसी परमेश्वर रूप शत की अभिव्यक्ति होती है। किसी स्वतत्र प्र कृति की सिद्धि नही होती है | यही बात शकराचार्य कठोपनिषद्भाष्म मे भी कहते है यद्यपि कठोपनिषद्‌ मे इस से कम बाह्य दृष्टि से तो साख्यदर्शन के महत्‌ अव्यक्त आदि पारिभाषिक पदों का उल्लेख मिलता है| जैसे महत परमव्यक्तमव्यक्तात्‌ पुरुष पर । परन्तु इसके विरुद्ध शकराचार्य कहते है कि यहाँ अव्यक्त परमात्मा की ही सर्वधारण सामर्थ्यवान अनन्तशक्ति उसी को कारणावस्था माना है न कि साख्य के प्रधान की भाति कोई पृथक्‌ स्वतत्र तत्त्व | इसी अव्यक्त को श्वेताश्वर उपनिषद्‌ मे शक्ति माया प्र कृति प्रधान आदि कहा गया है | किन्तु इससे यह स्पष्ट है कि त्रिरूप जगद्योनि का जो सिद्धान्त छान्दोग्य आदि श्रुतियों मे वर्णित है। वह भाष्यकार शकराचार्य को भी मान्य है | छान्दोग्य उपनिषद्‌ का तेजोडबनन एक नही तीन है । फिर यह अज नहीं अपित्तु ब्रह्म से उत्पन्न है जबकि सांख्य की प्रकृति त्रिगुणात्मक होकर भी तीन नही एक ही है । जो अज और अनादि है। वहीं श्वेताश्वर उपनिषद्‌ जगत के उपादान कारण रूप त्रियुण शक्ति के अज और एक ही मानता है। हाँ यह बात और है कि वह इस अज शक्ति को ब्रह्म या परमेश्वर की




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