स्वामी विवेकानंद के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों का एक आलोचनात्मक अध्ययन | Swami Vivekanand Ke Samajik Avam Rajneetik Vicharo Ka Ek Alochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.67 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उन्होंने भारत में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली स्थापित करने की योजना बनाई जो उन्हीं के उद्देश्य को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो । अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली की स्थापना कर ये पाश्चात्य - संस्कृति समर्थक्र एक वर्ग। तैयार करना चाहते थे । पाठ्य - पुस्तकों समाचार - पत्रों एवं धर्म - प्रचार के माध्यम से सरल भाषा में भारतवासियों को यह समझाने का प्रयास किया जाता था कि भारत वर्ष की अपनी कोई विशेषता नहीं है जिसे आधुनिक विश्व में बचाकर रखना आवश्यक हो. । प्रगतिशील बनने के लिए भारत को सब कुछ विदेशों से ही ग्रहण करना होगा । वेश-भूषा भोजन शिष्टाचार व्यक्तिगत धर्म आदि सभी क्षेत्रों में पश्चिमी संस्कृति का सम्मान बहुत अधिक है । अंग्रेजों ने अतीत काल में भारतीयों द्ारा की गई विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के विषय में कहा कि यह उन्नति वस्तुतः दूसरी सभ्यताओं की सहायता से ही सम्भव हुई थी । मौलिकता भारत की नहीं .बेन्कि ग्रीस मिश्र या अरब की थी । भारत की जो निजी वस्तु है उसका मूल्य तुलनात्मक दृष्टि से नगण्य है. । पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय सभ्यता संस्कृति वेदान्त वेद और धर्म की तीव्र आलोचना की । उस समय जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की गई थी उसे स्वामी विवेकानन्द जी के शब्दों में नेति मूलक-शिक्षा कहा जा सकता है. । नेति मूलक शिक्षा व्यवस्था से किसी देश का कल्याण नहीं हो सकता । क्योंकि यह शिक्षा प्रणाली अपने देश की संस्कृति पर आधारित न होकर दूसरे देश की संस्कृति पर आधारित और अन्धे अनुकरण का परिणाम होती हैं । तत्कालीन परिस्थितियों में अग्रेजों ने भारतीयों में दास-सुलभ दुर्बलता का बीज बो दिया था । उन दिनों शिक्षित वर्ग अंग्रेजों के समान खान-पान वेश-भूषा आदि को ही अपनाने में व्यस्त रहता था. । खुलेआम अभक्ष्य भोजन और मदिरापान । . युगनायक विवेकानन्दु प्रथम खण्ड स्वामी गम्भीरानन्द पृष्ठ - 6 व विवेकानन्द साहित्यु अष्टम खण्ड पृष्ठ - 249
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