हिंदी भक्ति काव्य में श्रृंगार रस | Hindi Bhakti Kavya Me Sringar Ras

Hindi Bhakti Kavya Me Sringar Ras by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुद्रित और हतथिवित दौनों ही एकार की सामग्री फधष्ट माना मैं उपलब्ध न है । जी मुद्रित छामय्री उपलबुूध भी है उतका याठ प्रायः दाषधित है । पाठालीौघन का विषय हिन्दी वाली के ए लया है । उसके महत्व से सभी पूर्ति अभिक्ष नहीं है | अब पविदालों का यह हाल है तो बार्मिक गधों के उन प्रकाशकों या सपादकों की फपा दौषा दें जौ कि यप्मार्व किसी रपना का प्रकाशन था संपादन करते हैं भर जिसमें वे उत रवना का अहम ( पमर्त प्राक्षाप्त तो ऐै पृ) रूप देना बाहतै हैं | शतप्व वैज्ञानिक संपादन के अभाय मैं प्न्थीँ कै प्राप्त रु पॉ के आधार पर अध्यपन करने सै पढ़ भय सदा बना रहता हैं एक जिस आधार पर समरत अध्ययन उड़ा पिया जा रहा है |कहीं वहीं तौ अप्रामा्णिक नहीं है । प्रस्तुत प्रबंध में पह माया उतनी जलित नहीं है जैरी कि अन्यत होती दै। सूर का १क पद कल अप्रामाणिक लि हौ जाए तौ उसकै आधार पर प्राप्त निष्कर्ष भी अगुद्ध दो जाणी । परंतु सूर के उस पद की नप्नामारणिकता भक्ति साहित्य के अन्दर प्रवाहित दौते वाली शगार की धारा की नष्ट तह करती । इसी लिये प्रतुत अध्ययन मैं काव्यों को भालौचना न करके टन्हैं तथा ७नकी मी कृतियाँ कौ भायधार भूत सामग्री मानकर भक्ति काली न एंगार मं प्रवू्तियाँ का विश्लेषण ही किया गया है । रफार भी सँभव है पक समरत भक्त का वर्यों की रचना के प्रापाधण्क सँस्कुरण उपलब्ध हौते पर निष्कर्ष मैं थौड़ा देर-फौर दौता । उस अश तक उस कार्य की शु है] ६- हस्ततिथित ग्रन्थ इन नर नपपाना बा यान हश्तलिखित प्री की कठिनाइयों और भी जटिल हैं | अनिक स्थानों मैं गुँध-रत्न भरे पढ़ै हैं नष्ट दो रहे हैं और हम गसहाप की तरह उन्हें पाने मैं अप्तमर्थ हैं । एक विशाल सा हिस्मिक पेश नष्ट डौता जा रहा है और उनके स्वामी सर्प की भाँति उस पर बैठ है । उनको देखना तक मुश्किल है । आज वह स्थिति नहीं है जी २५-३० वर्ष पर्व थी पर ऐसे लौगों की मनौवृत्ति मैं वश नहीं हुआ है । अतः जितनी इस्तलिपि एवं. अपूका।




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