विराट के दर्शन | Virat Ke Darshan

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Virat Ke Darshan by भगवतीसिंह - bhagvatisingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र ৪৯ न्ट , इन दा क र| । सौदे की तोल में रफ्ती दो रत्ती का अ्रत्तर भी ईमाषद्वारी , शौर वेई भनोत भाप दंड बच जाता है। वहुधा छोटी सी गणित मे चारन को सुटाई परखने का आराम रिवाज है| इस अकारे को व्यवस्था पर গুল हुये सभाज की रचना में 'किसी को दोप देवा भी तक संगपत नेही है । एफ [১ ৭২ ঈ লি) ঈ সবশী भी दो चिद्धिवा भेजपता रहता हिः, दूसरा इपतर के कायज और कारपन को निजी कम में लेना साभात्यए: व्यवहारिक भ्रस्िकार मानता है ५) तीसरा 'एक एक दिन अपने कोट में নিল दावत्ा-टांग्ती पिनकुशन ही खाती करे देता है। श्रीर यह পন होता है, दिच पहाडे, सन के श्मने | पस्पुता इसे अपर सुविधानचक नस्तौ डति मे कोई भी किसी को चोरी का अपराधी नहीं समभता नथोकि रद्दी के भाव जह। क़ांधजों और काचवनों का दुरूपयोग हो,“बहा इंच थोटी>छोटी सी बातो पर-चुकप ।লীলী পুলা सचन्तः नहतं ही ক্লিপ, चुच्छपा है ।एक ईराकी क़हावत में दिक्षा तो अच्छी दी भद है'। यदि किसी. गाव से अफसर गांव क्रा नमक भी-श्रुपत्न खालेगा तो, उसके कर्म- जारी गाव के:भाव को स्वाहा? कर देंगे। इसी प्रकार चदि “किसी विभाग का अ्रफक्षर एक दिन्र मी; चोरी” (न्यूपह्मारिक शब्दी, मे-छुविधा- जनक उपयोग), कर. लेगा तो ওল গীত সএখাকী আই त्रिभाग জী নী 9৭) কী এংহএব। অঃ) । किल्‍्छु किए भी आराण के थु॥ में ऐसी छोटी थोटी बातो की ओर ध्यान देचा-योगो,को-शिव नही लग स्तता हि | = अकार के {विप्रयो को लेकर पुकप।प़रीनी क्नाः भी 9७, “छोटी और श्रोद्धी” बात लगेगी 1 थ




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