आधे रास्ते | Aadhe Raaste

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Aadhe Raaste by कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की विधवा पत्नी के एक पुत्र पैदा हुभा श्रौर नानाफड़नवीस ने उसे पेशवा नियुक्त किया । दुष्ट राघोवा सूरत भाग श्राया श्ौर ई मार्च सन्‌ १७७४ को उसने साल्सेट बसई श्रौर सूरत कम्पनी को देकर सहायता प्राप्त की । वह खम्भात गया भ्रौर कर्नल कीटिंग की ध्रोर दो गया । लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुभ्ना। पूना के सेनापति हरिपंत फड़के ने अंग्रेजों को हराया । इस युद्ध में भड़ौंच की भूमि युद्ुज़ेत हुई । कम्पनी के हाथ मजबूत करने के लिए उस्ताद मोस्टिन बड़ौदा झाया । गायकबवाड़ को मराठा राज्यसंघ से श्रम किया और उससे भड़ोंच परगनों की सरकार तथा कर ब्का अधिकार ले लिया । जिस समय से शाहेश्रालम ने केशरदास को भड़ोंच परगने की मुन्शीगीरी दी थी उस समय से दस वर्ष के भीतर तो जिसको मौका मिला वही भड़ौंच को लूटने लगा । नाना फड़नवीस ने ३ जून सन्‌ १७७६को पंढरपुर की सन्धि की श्र भड़ोंच तथा उसके शस-पास्र का प्रदेश कम्पनी को दिया । कुछ दही दिनों में कम्पनी ने पंढरपुर की संघि को तोड़ दिया और मरहठों की पहली लड़ाई शुरू हुई । दुष्ट मद्दादजी सिंधिया पेशवात्ं को धोखा देकर परदेशी के साथ मिल गया । नाना फड़नवीस की जीत हुई तो भी मददादजी की मदद से झंग्रेज नष्ट होने से बच गए । १७ मई सन्‌ १७८९ को सालबई की संधि के श्रनुसार कम्पनी ने मराठा राज्यसंघ को घोखा देने के इनाम में बेचारे झनाथ भड़ौँच को महादजी को जागीर में दे दिया । भ्ोर इससे श्री कालिका चरणी तत्पर राणोजी सन्‌. (१) मद्दादजी रिंदे निरन्तर (0 के प्रतिनिधि सं० १८४८ ( सन्‌ १७६२ ) की श्रावण शुक्का तीज को बमसम ( ब्राह्मण ) मुन्शी केशरदास छबीलदास को कुछ गाँवों के इजारे का पाँच वर्ष का पट्टा लिख देते हैं । सल्तनतें झाती हैं श्रौर जाती हैं लेकिन विश्वम्भरदास के बशज जेसे थे वेसे ही श्रपनी भड़ोंची महत्ता में श्श्‌




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