प्रथ्वीराज रासउ | Prithvi Raj Raso
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51.47 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ 3] जिते मोइ मज्जा लगये आसमसानि । (मोग्४९८.८३५-३द ) झाकुवे मरने... जनंने लिट्टाने | वजे दह॒ टंगिदे विभू मनि । ( मो० ४९८.३९-४० ) इस की पुष्टि भी कहीं कहदी इ की मात्रा के ए की मात्रा के रूप में पढ़े गए होने से होती है यथा बिनि गंडु चुप सम दासी सूरिजाते ( सुरिजालि ) । देव धघरडइ जल घन -अनिछ कडिंग चंद कवि प्रात ॥ (मो ८७) पढ़िचानु जयचंद इदतृ ढिढीसुर पेषें । नहिन चंद उनुद्दारि दुसद दारुण तब दिवे । ( मो० रररे १२ ) गहीय चढु रह गजने जाहाँ सजन जु नरेद । कबहटू नयन निरष्हू सनहू रवि अरविंद । में ० ४७४) ५] इयइ या इये के स्थान पर प्रायः ईइ छिखा गया है यथा --- सोइ एको बान संभरि घनी बीउ बान नह संघीइ । घरिभार एक लग मोगरीअ एक बार नृप ढुकीययें । (मो० ५४४ ५०६ ) इम बोल रिडि कलि अंतरि देहि स्वामि पारथीड । भरि असीइ रूप को जंगमि परणि राय सारथीइ (- सारथियइ) । (३०५ ५-६ ) मंगछ वार हि मरन की ते पति संधि तन घडीइ ( ) । जेत चढि युघध कमधघज सू मरन सब मुष मंडी ( - मडियद ) |. (मो० ३०९ ५-६ ) क्षिनु इक दुरदि विछंबीइ ( विलबियइ ) कवि न करि मसचु मंदु । ( मो ४८८२) सइ सद्दाब दर दिपीइ ( ) सु कछू भूमि पर मिछ । ( मो० ४७९.र ) सीरताज साद़ि सोभीइ ( नन्लोभियड ) सुदेखि। (मा० ४९९ १७ ) सुनी ( ) पुन्य सभ सन राज । (मो पर.५ ) ६] इयउ के स्यान पर प्राय इंउ लिखा मिलता हे -- इम जंपि चंद विरदीउ (विरदियड ) सु प्रथीराज उनिह्ारि एदिं। ( मो० १८९-६ १९०. ) इम जपि चंद विरदीड ( ) पट त कोस चहुर्वान गयु। ( मो० ३३५ ६ ) इम जंपि चंद विरदीड ( न्लविरद्यिड ) दस कोस चहुर्भान गड ।... ( मो० ३४३े ७ ) जिम सेत बज साजीड ( न- साजियड ) पथ । (मो० ४९२ र४ ) ७] उ की मात्रा का प्रयोग प्रायः अड के लिए हुआ है यथा ४ त्व ही दास कर इथ सुवय सुनाययूड 1 बानावलि वि दुहु बॉन रोस रिस दाइयु । मनहू नागपति पतन अप जगाइयु । ( सो ० ८० २-४- पायक घनू घर कोडि यानि भसी सहस हयमंत जहु । पंगुर किद्ि सामंत सुद्द जु जीवत अरहि प्रथीराज कुं । (मो० र३० ५-६ ) निकट सुनि सुरतांन वाॉँम दिखि उच दथ सु . ( सड ) जस नवसर सतु सचि नछि लूडीय न करीब भू ( भड )।. ( मो० ५३३ ३-४ ) सु (न सड ) बरस राज तप अंत किन... (मो० २१ की अंतिम अद्धली ) सु (न सह) डपरि सु (न सड) सहस दी अगनित दृह । ( मो० २८३.२ ) कन उ] ज राडि पढिखि दिवसि शु? (नल शड ) मिं सात निवटिया । ( मो० २९८ ६) ८] कमी-कभी ड की मात्रा से ओ की मात्रा का भी काम छिया गया है
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