नई सरहदें | Nayi Sarhaden

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Nayi Sarhaden by बंशीलाल यादव - Banshi Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। पोलिटन थे श्रौर संख्या में थोड़े होने के कारण अत्प समये में हो परस्पर घुलमिल-से गये थे । एक उमा ही बस ऐसा था जो सबसे दूर-टूर और तटस्थ-सा रहता था । अपने काम से काम श्र अधिकतर चुप रहना उसकी आदत हो गई थी । वह ऐसा क्यों है यह वह स्वयं नहीं जानता था । झपने.हृदय के तत्वों का विश्लेषण आदि भी उसके लिये एक रहस्य था । इन सब बातों की तहों तक पहुँचने जितना उसके पास अवकाश नहीं था । घड़ी ने जैसे ही पांच बजाये उसे प्रोग्राम में पहुँचने की बात याद हो आई । उसने भटभट फाइलें बन्द कीं और कलस इत्यादि को ड्राश्र में बन्द करने का चपरासी को आदेश देकर वह उठकर बाहर निकल आया । वह बैंक से बाहर वाली सड़क पर आकर तेज़ी से चलने लगा । पैदल चलना था और घर दूर था । साढ़े छः बजे उसे स्कूल पहुँच जाना था । वह और तेज़ चलने लगा । यदि वह प्रोग्राम में उपस्थित नहोतो ? क्या गीता उसकी प्रतीक्षा करेगी ? हां-हां अवश्य करेगी । यदि वह वहां नहीं पहुँचा तो गीता का दिल टूट जायगा । इसका पूर्वाभास कल ही तो उसे मिल चुका था जब उसके असहिष्णु व्यवहार ने उसके कोमल हृदय को द्रवित कर दिया था । आखिर उसे क्या अधिकार है अपने रूखे व्यवहार से किसी का अकारण ही दिछ दुखाने का ? सहसा उसे ध्यान भाया कि वह सड़क के ठीक बीष में चल रहो है । अपनी मुखंता पर उसे खीक हो आई । पता नहीं उसकी यह भावुकता एक दिन उसे कहां किस विपदा में डाल देगी । वह तत्काल फुटपाथ पर आ गया । थोड़ी ही दूर चला होगा कि उसका ध्यान किसी एव्सीडेण्ट की आवाज़ से आकर्षित हुआ । उसने देखा एक खाली तांगा एक साइकिल से टकरा गया है । साइकिल दूर जा गिरी है श्रागे के पहिये में बल पढ़




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