मेवाड़ का इतिहास (१७३४ - १७७८ ई.) | Mevad Ka Itihas (1734 - 1774)

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Mevad Ka Itihas (1734 - 1774) by जे. के. ओझा - J. K. Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेद्य (७ मिलने के परचात्‌ जब एक ओर सग्रामसिह का राज्याभिषेकोत्सव मनाया जा रहा तो दूसरी ओर मेवाड़ की सीमा तक मराठा आगमन के समाचार ज्ञात हुए इस बार _मरादा नमंदा नदी को पार कर मागे में अव्यवस्था फंलाते हुए मदसौर के _ पास मेवाड़ के क्षेत्रों मे प्रवेश कर धन वसुल करने लगे । यो मई १७११ ई० मे मराठों का प्रथमत मेवाड मे प्रवेश देख महाराणा इस अप्रत्याशित घटना से बडा खितित हुआ] उसने इस समस्या को _ केवल मेवाड़ को हो नहीं अपितु समस्त आ 1 उसने इस समस्या _को _ केवल मंवाड़ की ही नहीं अपितु समस्त राजस्थान की समस्या स्वीकार कर आमेर के सवाई जयसिंह से सपक स्थापित किया । सवाई जयसिंह ने चिन्ता तो व्यक्त को परन्तु सनिक सहायता. का कोई. स्पष्ट अपचवा-ः समयनगनाम्यानागवण्यावयाा सन नहीं दिया । मराठा समस्या ने मगुल-राजस्थान सबधो मे परिवर्तन कर मुधुर संबवों के निकट ला दिया । फिर भी मराठा विरोधी सहायता देने मे मूगल बादशाह फरु खसियर ने कोई उत्सुकता नही दिखाई । १७१४ ई० मे बादशाह ने सवाई जयसिहु को मालवा का सुबेदार नियुक्त किया जिससे कुछ वर्षों तक तो मालवा एवं राजस्थान में शाति बनी रही । परन्तु १७२० ई० मे बाजीराव के पेशवा बनते ही मराठा विस्तार नीति सुनिद्चितता लेने लगी । उसका तो मानना था कि पके हुए | पेड के तने को काटों और टहनियाँ अपने आप गिर जायेगी हमारे प्रयत्न हिन्दुस्तान की तरफ लगा देने से मराठा झडा कृष्णा से अटक तक लहरायेगा । ९ अत मालवा की सुरक्षाथे पुर्ण प्रयत्न किये जाने पर भी वहाँ लूट-खसोट की स्थिति बनी ही रही ३०. रा० रा० पु० अ० बी० ड्राफ्ट खरीताज़ ऑफ जयपुर रील० न० २२ डी० न० ४५६ नकल परवाना--सवाई जयर्सिह का श्रीनिवास को दि० जेठ बदी € वि० स० १७६८ (सोम० अप्रल ३० १७११ ई०) पर ३१ वही डी० न० ६१ नकल परवाना--आमेर से सवाई जयसिह का उदयपुर बिहारीदास पचोली को दि० आषाढ सुदी २ वि० स० १७६८ (गुरु० जून ७ १७११ ई०) ३२. जे० एन० सरकार ने (फाल० भा० है पृ० १४०) अप्रैल २२ १७३४ ई० में मराठो का राजस्थान में सर्वेप्रथम प्रवेश माना हैं तथा के० एस० गुप्ता ने (मेवाड एण्ड दी मराठा रिलेशन्स पृ० २१) १७२४ ई० । जब कि रा० रा० पु० अ० बी० मे सुरक्षित ड्रापट खरीताज ऑफ जयपुर रील० न०२२ डी०न० १०९ पत्र--आमेर से सवाई जयसिह का उदयपुर महाराणा सग्रामसिह को दि० आधषाढ सुदी २ वि० स० १७६८ गुरु० जून ७ १७११ ई० से स्पष्ट हो जाता है कि इस समय मराठा फौज मेवाड मे प्रवेश कर चुकी थी तथा उन्हें हटाने का प्रयास किया जा रहा था- ॥। लिष्यौ छौ जु दषण्या की फौज मेवाड की धरती वीच आय पहौची छे अर सरदार १२ मालवा की तरफ आया छा सु वजनिस भेज्या छे पहौचेला सु सारा समाचार मालूम हुवा... ३३ किनकाइड एण्ड पारमनीस ए हिस्ट्री आफ दी मराठा पीपुल पु ० रेस ३४ सीतामऊ जयपुर ट्रासक्रिप्ट्स एडिशनल पश्चियन जिं० २ पत्र स० १८७ हा




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