राजस्थान का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास | Rajasthan Ka Rajanitik Avam Sanskratik Itihas

Rajasthan Ka Rajanitik Avam Sanskrati Itihas by जे. के. ओझा - J. K. Ojhaडॉ. के. एस. गुप्ता - Dr. K. S. Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐतिहासिक सोत बाया गया जिन्हें प्राज भी देखा जा सकतों है 1 मद भारत में सर मु शिनो- लेय है । काले पत्थर का प्रत्येक शिलाखड 3 फुट छंधा व 20 फुट. जड़ा हैं । प्रथम शिला में दुर्गा गणेश सूर्य श्रादि देवी-देवताश्ों की स्तुति है और शेप शिलामों में प्रत्येक पर एक-एक सगे होने से कुल 24 सर्ग है तथा 1106 श्लोक हैं । यों देखा जाय ती यह प्रशस्ति संस्कृत भाषा में हैं। वितु इसमे श्रन्य भाषागय्ो विशेषकर श्रवी फारसी एवं लोक भाषा का प्रभाव भी स्पष्टत कलकता है । मोती साल मेनारिया के भ्रमुसार इसकी भाएा प्रवाहयुक्त व्यवस्थित तथा विपयानुकूल है। पर कुछ ऐसे स्थलों पर जहाँ कवि ने श्रपना कॉब्य- कौशल बताने की चेष्टा की है थहाँ शब्द योजना कुछ जटिल वस्तु व्यंजना कुछ श्रस्पष्ट एवं वर्णन-शैली कुछ श्रटपटी हो गई है । प्रथम पांच सर्गों में मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास है। मुख्य यप्य-विपय महाराणा राजसिंह के जीयन-चरिय एवं उपलब्धियों के साथ-साथ हमें इसमें 17 वी. शताब्दी की सामाजिक धार्घिक राजनीतिक एवं झाधिवा दशा के बारे में भी काफी रोचक वर्णन मिलता है । राजप्रशस्ति महाकाव्य प्रधानतया इतिहास का ग्रथ है श्रौर कविता उसका गौण विषय है । महाराणा राजसिंह के चरिश्र से सबंधित जिन घट- ना का वर्णन कवि ने इसमें किया है वे उसकी श्राँयो देखी है श्रौर चास्तवि कता पर श्राधारित है । विशेषकर राजसमुद्र के निर्माण कार्य की दुष्करता का उस पर हुए खचें का उसकी प्रतिप्ठा श्रादि का इसमें यथातथ्य वर्णन हुआ है। इसके साथ-सा तत्कालीन मेवाड़ की संस्कृति वेशभ्रुपा शिलप- कला मुद्रा दान-प्रणाली युद्ध नीति धर्म-कर्म इत्यादि श्रनेकानेक श्रत्य वृत्तों पर भी इससे श्रच्छा प्रकाश पड़ता है । राणा राजर्सिह के पूर्ववर्ती राजापों का इतिहास इसमें कुछ संदिग्ध श्रयवा अद्ध ऐसिहासिक सूत्रों के श्राधार पर लिखा गया जान पढ़ता है पर सत्य से बहुत दर वह भी नही है । 2 अरबी-फारसी शिलालेख -- राजस्थान के इतिहास को लिखने मे श्री एवं फारसी शिलालेखी का भी श्रत्यघिक महत्व है। मुस्लिम राज्य की स्थापना के बाद भारतवर्प में अरबी णुवं फारसी भाप के शिलालेख भी उत्कीर्ण किये जाने लगे । राजस्थान भी इसमें झपवाद स्वरूप नही है । ये फारसी व शभ्ररबी के लेख प्रायः दरगाहों मरिजदो सरायों तालाबों क्रो श्रादि स्थानों पर लगाये जाते थे 1 इन शिलालेखों से राजस्थान का इतिहास लियने मे इस.तरह से मदद मिलती है कि जैसे जिन नगरों स्थानों पर थे 1. राजप्रशस्ति महाकाव्यम सं. मोतीलाल मेनारिया पृ 43




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