अमर वल्लरी और अन्य कहानियां | Amar Vallari Aur Anya Kahaniya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.51 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - Sachchidananda Vatsyayan 'Agyey'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अमरवल्लरों हू घिर आये थे ठंड खूब हो रही थी । में सोच रहा था कि वर्ता आधेगो तो अमरवल्लरी की रक्षा कंधे करूँगा । एकाएक मेने देखा उप धूलयूपर पथ पर वहू चली आ रही थी वह अब भो पहले को भाँति अवलंकत थी उस का शरीर अब भी दवेत वस्त्रों से आच्छादित था पर उसकी आकृति बदल गयी थी उस का सौन्दर्य ठुप्त हो गया था । उस के शरीर में काठित्य आ गया था मुख पर शुरियाँ पड़ गयी थों आँखें घँत गयी थीं ओड ढोड़े होकर नोचे लटक गये थे । जब उस पहली मूर्ति से सके उस की तुला की तो मेरा अस्त- स्तल काँप गया । पर में चुप चाप प्रतीश्ा में खड़ा रहा । उपने मेरे पास आकर मुझे प्रणाम नहीं किपा न इप वल्डरी का सहारा ले कर बैठी ही । उसने एक बार चारों ओर देखा फिर बाँहें फैडा कर मुन्न से लिप गयी और फूट-कूट- कर रोने ठगी । उस के तप्त आँसू मेरी त्वचा को सींचते लगे. . मेने देखा वहू एकवसना थी और वह वस्त्र भी फटा हुआ था । उस के केश व्यस्त हो रहे थे दरीर धूल से भरा हुआ था पैरों से रक्त बह रहा था. . . वह रोते-रोते कुछ बोलने भी लगी. - देवता में पहले ही परित्यक्ता थी पर मेरी बुद्धि खो गयी थी में जहाँ गयी वही तिरस्कार पाया पर फिर भी तुम्हारी दारण छोड़ गयी में कृतघ्ता थी चली गयी । किस आशा से ? प्रेम--घोखा--प्रतंचना प्रतारणा उस छड़ी ने मुझे ठग लिया फिर--फिर-देवता में पतित्ता अष्टा कछकिनी हूँ । मुझे गाँव के लोगों ने मार कर निकाल दिया अब मे-- में निलेज्जा हूं अब तुम्हारी शरण आयी हूँ अकेली नहीं कढंक के भार से दवी हुई अपनों कोल में कक वारण किये हुए उस का वह रुदन असह्म था पर हम को विश्वकर्मा ने चुपवाय सभी कुछ सहने को बनाया है मुझ पर उस का पाश शियिल हो गया उतर के हाथ कितकनें लगें पर उस की मुूर्छा दूर न हुई । रत बहुत बीत गयी उस का संजा-गुत्य शरोर काँपने छगा फिर अकड़ गया. . .वह मूर्छा में ही फिर बड़बड़ाने लगी देवता हो ? छड़ी कितना घोखा कितनी नीचता प्रेम की बातें
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