अद्वैत वेदान्त में चेतन्य का समीक्षात्मक अध्ययन | Adwait Vedant Ma Chatanaya Ka samikshatmak Adhyayan

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Adwait Vedant Ma Chatanaya Ka samikshatmak Adhyayan by अवधेश सिंह - Awadhesh Singhनरेन्द्र - Narendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1... विश्व के आधारभूत सिद्धान्त के एकत्व की स्वीकृति। यह सिद्वान्त विश्व के अन्तरस्थ एवं सर्वातिरिक्त दोनों है। 2... इस सिद्वान्त का वाद्य जगत्‌ से मानव के अन्तर जगत्‌ में समग्र रूपेण परिवर्तन । 3... वाह्य विश्व के विराट से अन्तर के सूक्ष्म पूर्व का तादात्म्यीकरण । 4... इस के स्वरूप की पूर्ण चेतना के रूप में स्वीकृति जो कि सर्वव्यापक अपरिवर्तनीय तथा चिरन्तन रूप से वर्तमान है। 5... इस पूर्ण चेतना के अनुभव निरपेक्ष स्वरूप पर विशेष बल जो कि आनुभाविक जगत्‌ू के किसी भी ज्ञात पदार्थ से सर्वथा असमान है जो बाद में विकसित होने वाले सांख्य योग तथा अद्वैतवेदान्त की चेतना अनुभवातीत धारणाओं के लिए आधार शिला प्रस्तुत करता है। इस प्रकार सभी भारतीय दर्शनों का स्रोत उपनिषद साहित्य में जा सकता है और यही कारण है कि हिन्दू दर्शन में चेतना को समस्त संभवनीय विकल्पों में प्रस्तुत किया गया है। चेतना को द्रव्य गुण या कर्म और चिरन्तन एवं अपरिवर्तनीय की तरह या फिर परिवर्तनीय या क्षणिक या पुन नित्य रूप से विषयी और विषय के बविभेद में विभक्त 7]




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