धर्मयुद्ध | Dharmayuddh

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Dharmayuddh by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु घमंयुद्ध | फू होता कि यहाँ अब यह होता है तो मैं इन्हें लेकर क्यों श्राती १12 मांजी ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर झपनी कसम दिला कर पूछा-- पयोलती क्यों नहीं कया बात है ? तब विद्या ने रो रो कर बताया- बताऊँ क्या १००० सुझ पर ही बीतेगी.......उन्हें नीचे बेँठा कर शराब पिल्ञा रहे हैं । जाने कौन दो रांडें आयी हुई हैं १......मैया बड़े श्रादमी हैं चाहे जो करें मैं तो कहीं की नरहूँगी......। इन्हें लत लग गई तो मुझ पर क्या बीतेगी ? मांजी के सस्तिष्क में श्रपने परिवार के सवनाश की अाशंका और भयंकर पाप के प्रति क्रोध की चिनगारियों की श्रातिशबाजी सी छूट गयी | जिस झ्वस्था में बैठी थी--पके उलसके खुले बाल पुरुष क 1 दृष्टि के प्रति निःशंक शिथिल खुले शरीर पर बेपरवाही से डाला डुश्रा घोती का आँचल-- वेसे ही जीना उतरते समय पांव में उलक जाने से बचाने के लिए धघोती को उत्तेजना में घुटनों से भी ऊपर उठाये वे नीषचे की मन्ज़िल में श्रा पहुंचीं । घक्का देकर उन्होंने बैठक के किवाड़ खोल दिये । बिजली के प्रकाश में उन्होंने जो कुछ देखा उससे वे क्रोध में बदददवास हो गयीं | जैसे श्रपनी सन्तान को भेड़िये के सुद्द में जाते देख गैया क्रोध तर दुस्साहस में श्रपने सामर्थ्य के श्रौचित्य की चिन्ता न कर शेर के मुह में श्रपने निबल सींग झ्रड़ा दे | नि पे बैठे लोग श्पने हंसी मज़ाक के ठहाके में माँ जी के जीना उतरने की श्राइट न पा सके थे | के० लाल रंग में श्राकर साथुर की साली को अपना पेग खत्म करने में सहायता देने के लिए उनका गिलास उठा कर उसके मुख से लगाये थे । पिसेज माथुर के० लाल को संतुष्ट करने के लिए सुस्कराती हुई उसके गिलास में बोतल से नया पेग डाल रही थीं | उसी समय भयंकर चीत्कार का शब्द सुन सब की इृष्टि दरवाज़े की श्र गयी श्र देखा माँ जी को केश बिखरे शध नग्न शरीर उनकी ाँखें दिन के प्रकाश में जलते बिजली की टाच के बल्बों की तरह निस्तेज होकर भी चमक रही थीं । अपनी ढीली घोती के ख़िसक जाने की भी परवाह न कर माँजी दोनों




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