क्रिया कोष | Kriya Khosh

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पं. दौलतराम जी - Pt. Daulatram Ji

पं. दौलतराम जयपुर की तेरहपंथ शैली में एक समादृत विद्वान थे। उन्होने वि॰सं॰ १८२३ में 'पद्मपुराण' नामक हिन्दी ग्रन्थ की रचना की जो पद्मपुराण के मूलश्लोकों का यह अनुवाद है। वे आधुनिक मानक हिन्दी के आरम्भिक साहित्यकारों में गिने जाते हैं।

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पंडित सोनपाल जी - Pt. Sonapal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ क्रियाकोष | चचौपड़े । क्रिया छुठार गहै कर कोय अघतरवरकों कांटे सोय । जे बेचे दि और जु मठा उदर भरणके कारण शठा ॥ १५६ ॥ तिनकों मोल लेय जो खाहि ते नर अपनों जन्म नसाहिं । तातें मोलतनों दि तजौ यह गुरू आह्ञा हिंरदे भजो ॥ १५७ ॥। दूधी जमावे जा विधि ब्रती सो विधि धारहु भाषहिं जती । दूध दुहायर स्यावे जबे ततछिन अगनि चढ़ादे तवें ॥ १५८ ॥। रूपों गरम करे पयमाहिं जामण देय जु संसे नाहि। जमे दही या विधि कर जो बांधे कपरा माहीं सोहु ॥ १५९ ॥। बूँद रहे नहिं जलकी एक तबहिं सुकाय थरे सुविवेक । दहीबड़ी इद भाषी सही गद्दी जमावे तासों दददी ॥ १६० ॥। अथवा दधिमें रूइ भेय कपरा भेय सुकाय धरेय । राखे इक द्वे दिन ही जाहि बहुत दिना राखे नहिं ताहि ॥ १६१ ॥। जलमें घोलिर जामण देय दधि ले तो या बिधि करि लेय । और भांति लेवो ना जोगि भाखें जिनवर देव अरोगि ॥ १६२ ॥ सीतकाठकी इह विधि कही उष्णरु बरषा राखे नहीं । जोहि सबेधा छाँद़े दधी तासम और न कोई सुधी ॥ १६३ ॥। सूद्रतने पात्रनिकों दुग्ध दधि-घृत-छाछि भखें ते मुग्ध । उत्तम छुल हू जे मतिहीन क्रियाहीन कुविसन अधीन ॥ १६४ ॥। तिनके घरको कछडु न जोगि तिनकी किररिया बहुत अजोगि। दूध उंटणी भेड़िन तनों निंदो जिनमत माहीं घनों ॥ १६५ ॥। गो महिषी विन और न भया कबहु न छेनों नाहीं पया । महिषी दूध अमाद करेय तातें गायनिकों पय लेय ॥ १६६ ॥ नीरसब्रत धर दूध तजे तातें सकल दोष ही भजे । हाट बिकंते चूनरु दालि बुधजन इनको खावी टालि ॥ १६७ ॥। बींधी खोटे पीसे दलै जीवदया केसे करि पढ़े । चूनो संखतणों कसतुरि इनकों निंदि कहें जिनसूरि ॥ १६८ ॥ दोहा | चरमसपरसी वस्तुकों खातें दोष जु होय । ताको संलेपहिं कथन -कहों सुनों भविलोय ॥ १६९ ॥।




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