भारतीय वाड्मय | Bhartiya Vadmaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
65.93 MB
कुल पष्ठ :
600
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). १४ 1 आढोकित है भक्ति दर्शन और कवित्व तीनों की इष्टि से तुलसी का काव्य अद्वितीय है। हिन्दी के रामकाव्य में दो प्रबृत्तियाँ मिलती हैं--एक तुलसी द्वारा प्रभावित मर्थादावादी प्रवृत्ति और दूसरी माधुर्य भाव से प्रेरित शूंगारिक प्रइत्ति जो राम को रसिक नायक के रूप मैं प्रहण करती हैं और इसका साहित्य भी परिमाण मैं कम नहीं है । वास्तव में मध्ययुग का भारतीय साहित्य प्रचानतः मक्ति-साहित्य ही हे--मक्ति के क्षेत्र में वेष्णव भावना का प्रचार अधिक रहा और वेष्णव काव्य में भी माघुर्य-संवलित कृष्ण काव्य का । इसी प्रसंग में सहसा भारतीय भाषाओं के अभिनेय साहित्य .का स्मरण हो आता है---उसकी अंतर्भूत एकता और भी विचित्र है। झष्णः लीला तथा अन्य पौराणिक उपाख्यानों पर आश्रित लोकनाव्यों की परम्परा मध्ययुग में अत्यन्त लोकप्रिय थी और प्राय+ सभी भाषाओं में किसी न क्रिसी रूप में उसका साहित्य विद्यमान है। तेठ्गु और कननड़ में यक्षयान मछयाल्स में आटूटकथा मराठी में लछित बैंगढा तथा अन्य पूर्वी भाषाओं में यात्रा और गुजराती तथा हिन्दी में रास नाम से अमिद्दित अमिनेय आख्यान प्रायः सभी भाषाओं के नेंज्यिं-साहिय की भूमिका प्रस्ठुत करते हैं। इनको कथावस्वु का साम्य इतना विचित्र नहीं जितना ०दौली आर रूप का साम्य । प्रगीत तत्व का प्राघान्य काय-व्यापार की न्यूनता भक्ति अथवा उसके आमास की प्रेरणा यहाँ प्रायः सबन्न समान रूप से इृष्टिगत दोती है । इसके बाद आधुनिक साहित्य आता हैं। आधुनिक साहित्य के विकास की रेखाएँ तो सभी भारतीय साहितों में और भी अधिक समान रही हैं । लगभग सभी. भाषाओं में आधुनिक युग का सूचपात सन् १८५७ के स्वातन्य-संघघ के आसपास ही होता है। दक्षिण में अथवा बंगाल मैं परिंचमी सभ्यता-संस्कृति का प्रभाव मध्यदेश अथवा उत्तर पश्चिम की अपेक्षा कुछ पहले आरम्भ हो गया था किन्तु वास्तव में आधुनिक युग का उदय पादचात्य सम्पक के साथ न होकर उसके विरुद्ध संघर्ष के साथ--दूसरे शब्दों मैं प्रबुद्ध भारती य चेतना के उदय के साथ होता है और इस दृष्टि से भारतीय वाइमय में आधुनिकता का समारम्भ लगभग समकाछिक ही है। विमत दाताब्दी में स्वतन्त्रता से पूर्व सन् १९४७ तक आधुनिक साहित्य के सामान्यतः चार चरण हैं १-पुनर्जागरण २-राष्टीय-सांस्कृतिक भावना का उत्कर्ष ( जागरण-सुघार ) रे-रंमानो सोन्दर्य-दृष्टि का उन्मेष ओर ४-साम्यवादी सामाजिक चेतना का उदय । कुछ समय के अन्तर से भारत की सभी माषाओं में उपयुक्त प्रइत्तियों का अनुसन्धान किया जा सकता हैं । तमिढ़ में पुनर्जागरण के नेता थे रामलिंग स्वामीगठ--इन्होंने अपने काव्य में भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का प्रयत्न किया और सभी धर्मों की एकता का प्रतिपादन कर नवीन समन्बयं-इृष्टि का उन्मेष किया । उनके अन्तर कवि सुबहझण्य भारती ने भारत की राजनीतिक . सामाजिक एवं
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