भारतीय शिक्षा का इतिहास | Bharatiya Shiksha Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) भ्रनन्त है देश-काल की सीमा से परे है । इस तरह श्राभ्यन्तरिक ज्ञान तथा व्यावहारिक झ्राचार दोनों के द्वारा उनकी संकीर्ण जन्मजात वैयक्तिक इकाई एक सार्वभौम समुदार तथा समुन्नत व्यक्तित्व में परिवतित हो जाती थी । भारत के इस सांस्कृतिक श्रौदार्य के कारण ही विरव की श्रनेक संस्कृतियाँ यहाँ की पुनीत सांस्कृतिक सरिता में घुल-मिलकर एक हो गई । दिक्षा के उपरोक्त उद्ददय तथा झ्ादशं प्राचीन भारत की दिक्षा-पद्धति का स्वरूप निर्धारित करते हैं । १--जनपद के संघर्ष तथा कोलाहल से दूर सुरम्य वन-प्रास्त में ऋषि का श्राश्रम श्रवस्थित रहता था । प्राचीन भारत का विद्यार्थी यहीं प्रकृति के भ्रंचल में भ्रपना शारीरिक तथा मानसिक विकास करता था । विशुद्ध वायु स्रोतस्विनी का स्वच्छ मीठा जल हरे-ताजे फल पौष्टिक कन्द-मूल भ्रौर गुरु का प्रसाद उसके शरीर को सबल भर सौस्य बनाते थे । उन्मुक्त झ्राकाश हरी-भरी वनस्थली सुभाषिणी निर्सरिणी भोले -भाले मृगशावक झादि के निरन्तर सहवास से उसके हृदय में एक नैसर्गिक उल्लास उत्पन्न होता जिसमें न किसी प्रकार की वासना होती न किसी प्रकार का इन्द्र । प्रकृति के उद्दाम बे भव में वह सावंभौम स्वेशक्तिमान मूल सत्ता का शझ्राभास पाता जिसकी खोज तथा प्राप्ति उसके जीवन के लक्ष्य थे । जन-समूह के सांसारिक संघर्षो तथा प्रतिबन्धों से विभुक्त रहकर वह भ्रपने व्यक्तित्व का पूर्ण अनुभव करता तथा उसे प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में परिपुष्ट करता था । गुरु के श्रादेशों के सिवा उसके व्यवितत्व को झ्राँच पहुँचाने वाली एक उँगली भी नहीं उठ सकती थी । नगर के श्राधघुनिक विद्यार्थी की वैयक्तिक इकाई जन-समूह के भ्रनुशासन में सर्वथा विलुप्त हो जाती है । राजनीतिक सामाजिक तथा श्रन्य हलचलों में उसका व यक्तिक श्रस्तित्व नगण्य-सा दीख पड़ता है । प्राचीन विद्यार्थी का गुरुकुल समाज को नेतृत्व देता था । श्राज कें विद्यार्थी का विद्यालय श्रधिकतर समाज से नेतुत्व ग्रहण करता है । छात्रों के बन-प्रान्तीय गुरुकुलों से ही प्राचीन भारत की सांस्कृतिक रदिमयाँ विकीणं होती थीं । प्रकाश का स्रोत नगर या राजपरिवार नहीं बल्कि ऋषियों का श्राश्रम था । कवीन्द्र रवीन्द्र के अनुसार भारतीय संस्कृति का निर्माण नगएों में नहीं अपितु वन-प्रान्तीय झाश्रमों में ही हुआ था । है ै. 105. प्ा0प्पहापपि] प्िपापि्ट फा७ एण0एट छण पतांघ् 158 पिपघ्के 676 घिं€ ०065. 00 फिट ५0 15 घिं द०प्रा घफा-फिट80 04 211 118 लंगंपिड9घिं०ा ---पिधधाणता जरं2घा 80घपा छा. 8. हू. ०0० ०ापुंव ३ सै ल6ाए ता छतपटघ्छि0ए--सिरणण०ट्टप्र6 उरहू




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