विनय - पत्रिका भाग - १८ | Vinay - Patrika Bhag - 18

Vinay - Patrika by देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivediश्री गोस्वामी तुलसीदास - Shri Goswami Tulsidas

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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विनय-पत्रिका दद शिव-रूप तथा दशामके वक्त विष्णु-रूप रहते हैं । इसीसे गोस्वासीजीने उन्हें हुरि-संझर-विधि-सूरति कहा है । दिव-स्तुति ९ ३ ) को जाँचिये सम्भु तजि आन _ दीनदयाठु मगयहर्मारति-हर (सब घरकार समर्थ मगवान ॥ है॥ काय्टकूट-जुर-जेरत सेरॉसिर निज एन लागि किये विष-पान | दारून दूदुजज- जगत-दुखदायक मारेड जरिपुर एक ही वान ॥२॥ जो गाते अगम महासुनि दुलभ कहत सन्त सति सकल पुरान । सो गति मरनकाल अपने पुर देत सदासिव सबहि समान ॥३॥ सेवत सुलभ उदार कलपतरु पारवती-पति फैरम सुजान । देह काम-रिए राम-चरन रति तुलसिदास कहेँ रुपानिघान ॥४॥ दाबदार्थ--आन न दूसरा और कोई । आरति लक । यदवान्‌ न ऐश्व्यवान्‌ू । काल- जूट दलादक विष । जुर न उवाला ज्वर ताप । कामरिपु न शिवजी | मावाधथ--दिवजीकों छोड़कर आर किससे याचना की जाय ? आप दीनें- पर दया करनेवाले सक्तोंका कष्ट हरण करनेवाले हर तरहसे समथ और ऐश्वर्य- वान्‌ दे ॥१॥ समुद्र-मंथनके बाद जब हलाहल विघकी ज्वालासे देवता और असुर जलसे लगे तब आप अपनी दीन-दयाठताका प्रण निभानेके लिए उस थिषको पान कर गये । संसारको दुःख देनेवाले भयंकर दानव त्रिपुरासुरकों आपने एक ही बाणमें मार डाला था ।२॥। सन्त वेद और सब पुराण कहते हैं कि जिस गतिकी प्राप्ति महा सुनियोंके लिए अगम और दुर्लभ है वहीं गति या सुक्ति आप अपने पुरमें अर्थात्‌ काशीमें सृत्युके समय सदैव सबको समभावसे दिया करते हैं ॥ ३ ॥ सेवा करनेमें आप सुलभ हूं यानी सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं । हे पार्वतीके पति हे परमज्ञानी आप कत्पन्रक्षके समान उदार हैं । है कामदेवकों भस्म करनेवाले हे कपानिधान तुलसीदासकों श्रीरामजी के चरणोमिं भक्ति_दे दीजिये .




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