प्रश्न | Prashn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.34 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ प्रश्न युवतियों को व अनुचित रीति से भकॉकता दो अथवा छुड़छाड करता हो यह बाव न थी। किन्तु सददसा किसी को सामने देखकर बह आँखें भी न फेर ले सकता था। इसे बह झादशंवाद का ढोंग समझता था । रेखु इस सीमा तक न जा सकती थी । लोक-लज्जा का भय माता का डर ऊपर से स्त्री होने का देवी अभिशाप पर ऊपर से दोनों चाहे जितने अंतर पर हों भीतर-ही-भीतर उनके हृदय अज्ञात फूप से एक दोरहे थे | दोनों समकते थे श्रनुभव करते थे कि इस प्रेम का अन्त बड़े भीषण रूप में होगा निराशा वियोग और परिताप की दुःसद्द उ्वाज्ञाएँ उन्हें जला डालेंगी पर वे विवश थे | प्रेम हदय का सौदा है और हृदय पर अधिकार रखना कक १. बिरले ही व्यक्तियों के मान की बात है । गर्मी के झुच्सानेवाले दिनों में जिन्होंने काशी के दशा- श्मेघ-घाठ की संध्या-समय शोभा देखी है ये जानते हैं कि दिन-भर के परिश्रम से थके बाबू लोग किस श्रकार उस बोर भागे जाते हैं । सुरेश श्रब तक घर में बेठा था। किन्तु जब माता घर के काम-धन्घों में लग गई छोर बहुत पुस्तक लेकर बैठी तो वद्द भी बैठे-बैठे ऊब उठा। सोचा कीं घूम ाउँ । कपड़े पहने और श्राइने के सामने खड़े होकर बाल ठीक करने लगा । मालती ने देख लिया और टोक बेठी-- मैया कहाँ जा रहे हो? चौक जाना तो मेरे लिये लेस लेते आना पैसे पीछे दे दूँगी |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...