पच्चीसवाँ घंटा | Pachisawan Ghanta

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भदंत आनंद कौसल्यायन -Bhadant Aanand Kausalyayan

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सी. वर्जिल जारजो - C. Varjil Jarjo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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19 पच्चीसवाँ घण्स श्र जमीन खरीदेंगे । फांतना में एक से एक बढ़ कर जमीन थी । पादरी प्रसन्न था कि जॉन जा रहा है । चन्द साल बाद वह भी एक अच्छी जायदाद का मालिक हो जायगा । लेकिन उसे श्राइचय था कि वह इतनी जल्दी जा रहा है । जॉन ने कमी इसका जिक्र नहीं किया था । वे झाज तक रोज साथ-साथ काम करते रहे थे । पमुकते कल ही चिट्ठी मिली है जॉन ने कुछ समाधान किया । कया ठुम झकेलें जा रहे हो ? घिज्ञा आायोन के साथ। हमने कोयल्ला भॉकनेवालों का फामं भरा है । हमें इन्जन-घर में काम करना होगा | इस तरह हम में से हर एक को किराये के केवल पाँच सौ ली देने पड़ेंगे । कान्सटैनजा में घिजा का एक मित्र है । बह जहाज के श्रड पर काम करता है । उसी ने सब ठीक-ठाक किया है । पादरी ने उसकी मंगल-कामना की । उसे श्रफसोस था कि श्रब जॉन काम पर नहीं श्रायेगा | जॉन नौजवान था श्रौर काम श्रच्छा करता था । वह दयालु था ईमानदार था किन्ठु था गरीब । उसके पास एक इन्च जमीन नथी। सारा दिन दोनों इकट्ठे काम करते रहे । बूढ़ा श्रमरीका की बाएँ करता था । जॉन सुन रहा था | बीच-बीच में वह एक ठण्डी साँस ले लेता | श्रब तो वह एक प्रकार से झ्रपने निंयाय॒ पर पछुताने लगा था । शाम को जब वह अपनी मजदूरी ले चुका तो वह नोची नज़र किये पादरी के सामने खड़ा रहा । उसे वहां श्रौर खड़े रहने की जरूरत न थी किन्तु उसे जाना दूभर हो रहा था । बूढ़े ने उसके कन्धों पर थापी दी | वहाँ पहुँच कर मुझे लिखना उसने कहा । कल प्रातःकाल त्राना श्रौर रास्ते के लिये जो खाना मैंने तम्हें देने को कहा है. वह ले जाना ।




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