कान्त की नीति दर्शन | Kant Ka Niiti Darshan
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, पश्चिमी / Western

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.03 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( द ) है । वे श्रपने निदवय पर दृढ़ है । कींट कहते हैं कि उपर्युक्त शास्त्र के सभी प्रवर्तकों के चिंतन में एक त्रुटि यह है कि वे बुद्धि द्वारा पूर्णतः प्राक-प्रानुभविक समभो जाने वाले प्रेरकों को अ्रनुभवात्मक प्रेरकों से पृथक नहीं कर पाते हैं । कांट के मत में केवल प्राक-प्रानुभविक प्रेरक हीं पूर्णतया नैतिक प्रेरक हो सकते हैं । श्रनुभवात्मकं प्रेरकों कों इच्द्रियाधित बुद्धि (एसर्टरडाथणताए्ट) प्रनेक अनुभवों की केवल पारस्परिक तुलना करके ही सामान्य प्रत्ययों की श्रेणी तक ऊंचा उठाती है। कांट ऐसे नीतिशास्त्रियों की शझ्रालोचना इस आधार पर करते हैं कि ये नीतिशास्त्री दो भिन्न प्रकार के प्रेरकों--प्राक्- ग्रानुभविक तथा शभ्रचुभवात्मक--के स्रोत की भिननता की अ्रवहेलना करते हैं तथा उन प्रेरकों को उनकी सापेक्ष दाक्ति व दौबंल्य के ग्राघार पर समभाने की चेष्टा करते हैं । वस्तुत ये नीतिशास्त्री प्रेरकों में भेद न कर समस्त प्रेरकों को एक ही प्रकार का व समरूप मानते हैं । इसी झ्राघार पर ये कत्त॑व्य के प्रत्यय का निर्माण करते हैं । कांट इृढ़ता से कहते हैं कि ऐसा कत्तंव्य का प्रत्यय और कुछ भी हो सकता है किन्तु इतना निश्चित हैं कि यह नेतिक प्रत्यय नहीं हैं । कत्तव्य के प्रत्यय के उपयुक्त स्वरूप की झ्राद्या केवल एक ऐसे नीति- दर्शन से की जा सकती है जो किसी भी व्यावहारिक प्रत्यय के स्रोत या मुलोदगम के संबंध में यह निण॑य नहीं कर पाता है कि वे झ्रनुभव से उदुभूत हैं ग्थवा उनका स्रोत अनुभवातीत है । कांट की पुस्तक (नेतिक श्रादर्शों की तत्वसीमांसा का सुलाधार) का उद्देदय _ कांट की यह हार्दिक इच्छा थी कि वे भविष्य में नैतिक शझ्राद्शों की तत्वसीमांसा नामक ग्रन्थ प्रकाशित करेंगें अत उसके पु भूमिका के रूप में उन्होंने इस सुलाधार (8त्०प्०प०्) का प्रकाशन उचित समझा । कांट यह मानते हैं कि नतिक श्रादर्शों की तत्वमीमांसा के लिये विशुद्ध व्यावहारिक बुद्धि की मीमांसा के श्रतिरिक्त भ्रन्य कोई श्राघार नहीं है । वे कहते हैं कि जिस प्रकार प्रकृति की तत्वसीमांसा के लिये विशुद्ध संद्धान्तिक बुद्धि की मीमाँंसा ही एकमात्र नींव है उसी प्रकार नेतिक श्रादर्शों की तत्वमीमांसा के लिये विशुद्ध व्यावहारिक बुद्धि की .मीमांसा श्राववयक हैं। स्मरणीय है कि विशुद्ध व्यावहारिक बुद्धि की मीमांसा तथा विशुद्ध संद्धान्तिक बुद्धि की मीमांसा कांट द्वारा रचित दो दाशषंनिक ग्रष्थों के नाम १. क्रिटीकू झरॉफ प्योर प्रेक्टिकंल रीज़न २. क्रिटीकू झॉफ प्योर रीज़न
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