दादू दयाल की बानी | Daadu Dayaal Kii Baanii Pahilaa Bhaag

Daadu Dayaal Kii Baanii   Pahilaa Bhaag by दादू दयाल - Dadu Dayal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुरुदेव को झंग ॥ करनी ॥ सबद ठूध घृत राम रस मथि करि काढ़े कोइ । दाढू गुर गोबिंद बिन घट घट समभश्हि न होड़ ॥ ३० ॥ सबद दूध छृत राम रस कोइ साध बिलोवणहार । दादू अमृत काढ़ि ले गरमुखि गहे बिचार ॥ ३९ ॥ चीव दूध में रमि रहा ब्यापक सबही ठौर । दादू बकता बहुत है मथि काढ़े ते और ॥ ३२ ॥ कामथेन घट घीव है दिन दिन दुरबल होइ । गोरु ज्ञान न ऊपजे मथि नहिं खाया सोड़ ॥ ३३ ॥ साचा समरथ गुर मिल्या तिन तत दिया बताइ । दादू मोट महा बली घट घृत मथि करि खाइ ॥ ३४ ॥ मथि करि दीपक कीजिये सब घट भया प्रकास । दाढू दोया हाथ कारि गया निरंजन पास ॥ ३५ ॥ दीये दीया कीजिये गरमख मारग जाइ । दाढू अपणे पीव का द्रसण देखे आइ ॥ ३६ ॥ दाढू दीया है भला दिया करो सब कोइ । चर म॑ धस्या न पाइये जे कर दिया न होड़ ॥ ३० ॥ दाढू दीये का गण ते लह दोया मोटी बात । दीया जग में चॉदना दोया चाले साथ ॥ ३८ ॥ निमल गर का ज्ञान गहि निमंल भगति विचार । निर्मल पाया प्रेम रस छुदे सकल बिकार ॥ ३९ ॥ निमल तन मन आतमा निमल मनसा सार । निमल प्राणी पंच कारि दाढू लंघे पार ॥ ४० ॥ माय बड़ा । सौया था दीवा चिराग को कहते हैं जिस का अभिधाय शान है और साखी २३७ व ३८ में दान का भी श्रलंकार है । 6 लखें। | बड़ी ।




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