Jvar Vigyan by माधव प्रसाद पाण्डेय - Madhav Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपरविज्ञान १. उत्तापोत्पत्ति और नियन्त्रण मनुष्य रारीर बड़े पुण्योंके फलसे प्राप्त होता है। परन्तु यह प्रत्येक मनुष्य श्रच्छी प्रकार जानता है कि मनुष्य योनि सिल जानेपर भी अगर शरीर निरोग न हो तो उसका जीवन निरथक हो जाता है । वद धर्म श्रथ काम और मोक्षमें किसी एक सिद्धिको भी प्राप्त करके शपना कल्याण नहीं कर सकता । शरोर को स्वस्थ बनाये रखने के लिये मनुष्य को सदा सचेत रहना एवं उसे स्वास्थ्यके सियमोंसे भला प्रकार परिचित होना चाहिये। १. मिथ्या श्ाहार-विहार २. ऋतु प्रकोप या. कीटारणुश्रोंका द्ाक्रतण हे. मानसिक आघात ४. ्रागस्तुक ( विद्युत श्ादि ) ५. असिशाप श्रादि कारणोंसे हो. शरोर के धघातुभ्रोंमें विषमता उत्पन्न होकर रोगोत्पत्ति होती है । संसार में श्रनेक रोग हैं श्र प्रतिदिन नये नये रोग उत्पन्न होते जा रहे हैं परन्तु प्राणीमात्र को दोनेवाले विकारोंमें ज्वर की प्रघानता है । कोई




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