प्रसाद और निराला के काव्य शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन | Prasad Aur Nirala Ke Kavya Shilp Ka Tulnatmak Adhyayan

Prasad Aur Nirala Ke Kavya Shilp Ka Tulnatmak Adhyayan by उषा श्रीवास्तव - Usha Srivastava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनन छाफा थी कह लागधाइणा स्वस्था है जौ मेवे पस्य थी आँ। कल फू स्व न्क क्लचिरी सीसती सहादेवी बा नै सवना शाम थार पर्स का रफ प्म पाए छिए्ना हैं ही काव्य का स्वस्थ यपमा हैं | काव्य उम्यन्धी उपयुक्त समस्त मान्यता के ताघाकर पर िष्दाष्मत यार पाहा था पण्ता है पक वाश्त में कविता को है जी कवि की मावनाजों को उठी रुप मैं दुधरे के पद में लि का दें पा रुप मैं वह गाँव में कुदय मैं उदजुद्ध हुई है । हम समस्त भारतीय सब पाश्वययत्य साव्य चिन्ता एच प्रमीवाकी नै काव्य थे दो रूपपे की परिकत्पमा दी हखक उतण्य पान्ताशिक रुप ह जुमाति ) थार दु्रय वाध्य रुप ( जिव्यक्ति 3 1 यथा हम आचार्य मैं काव्य के स्थप्प जोर जापी प्रजा पर सी लिपाएं व्यक्ता करते गमय स्लुमुति वेभिव्य्रि की अभिननता वौ ही पहच्य छिया है । ं कार्त्ित ये वापस म्प्यू्क्ति का थीं उदास रुप प्रश्टुत का है वद वाठ्य में शब्द ( रुप ) वी कम ( माव ) की जन्यता को समकनै फिर पयाष्त हैं । वास्तव मैं धरिस्थ का कह रुप रिजामें शब्द ली मा रूप से एम्भूक्ता रहसे हैं फाव्य गहंलाता है । का प्रकार फाव्य रे वाइ्य भर कप प्रौदुमाधित होते हुए मी एक ही है। धन दो रुप शमी माबवी बम पथ के साधी # पूछ ७ | था विव सँए सतिपणष बात चिता वन्दे पंवती परमेश्वर ।




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