मय्यषी नदी के किनारे | Mayyashhi Nadi Ke Kinare

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मय्यषी नदी के किनारे  - Mayyashhi Nadi Ke Kinare

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एम. मुकुन्दन - M. Mukundan

Add Infomation About. M. Mukundan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वह ठीक होने वाला रोग नहीं है क्या सा ब ? बतौरी हो जाने पर कभी ठीक हो पाएगा कुरम्बी ? हाय राम उसकी औरत और बच्चे मुहताज हो जाएंगे । वाषयिल कोरन मजदूरी करता था। उसकी कोरिन और तीन दुधमुंहे बच्चे हैं। अचानक गालों पर अर्बुद (कैंसर) हो गया। लेस्ली साहब और कुरम्बी अम्मा गांव के हाल-चाल बतियाते बैठे रहे। साध-साध सुंघनी भी सूंघते रहे। सांझ घिर आई थी। मैं जाऊं कुरम्बी ? साहब ने उठकर सिर पर टोपी लगाई। जा रहे हैं सा ब ? कुरम्बी अम्मा के स्वर में विदाई का विषाद था। कल भी मैं आऊंगा न कुरम्बी ? लेस्ली साहब कुरम्बी अम्मा को देखकर जरा हंस दिए । घोड़ागाड़ी पर बैठकर बड़े फिरंगी साहब के बंगले की ओर चल दिए। वहां हर रात को बड़ा खाना-पीना चलता है। लेस्ली साहब के अलावा दावीद साहब चेक्क मृप्पर सरषाम आम रेत्रेत कुज्जिकण्णेन आदि बड़े फिरंगी साहब के रोज के मेहमान थे । बंगले में खाना-पीना चलते समय कतार में खड़ी घोड़ागाड़ियों पर चालक लोग ऊंघते रहते । घोड़े जुगाली करते रहते । आधी रात के बाद बड़े फिरंगी साहब के नशे में चूर अतिथियों को लेकर घोड़ागाड़ियां कतार में रियूद रसिदाम्स से होकर गुजरती नजर आततीं। दूसरे दिन भी लेस्ली साहब आए । कुरम्बी अम्मा रोज धूप कम होने पर लेस्ली साहब का इंतजार करती बैठक में बैठी रहतीं-सुंघनी से भरी डिबिया लिए । लेस्ली साहब रोज आया करते । घोड़ागाड़ी सड़क पर खड़ी करके टोपी लगाए सिर को बाहर निकालकर पूछा करते कुरम्बी कुरम्बी जरा सुंघनी दोगी ? उसमें क्या हर्ज है ? उसमें मांगने की कौन-सी बात है 7? रोज की तरह कुरम्बी अम्मा कहतीं। जिस दिन लेस्ली साहब न आते उस दिन कुरम्बी को नींद नहीं आती। कुरम्बी अम्मा की याद में पड़ने वाले पहले वर्ण्संकर लेस्ली साहब के पिता क्लेमां साहब थे । बेहद लंबे थे वे । अलावा इसके सफेद-सफेद ऐंठी खड़ी मूंछें । रियूद लग्लीस पर क्लेमां साहब की शराब की दुकान थी । शराब बेचकर उन्होंने ठेर सारा पैसा कमाया था। डींग मारने वाले कलेमां साहब शराब की दुकान पर बैठकर अपने खानदान की महिमा और अपने बच्चों के बारे में लेक्चर देते। क्लेमां साहब की डींगों में सबसे मशहूर है-अठारहवीं सदी में अंग्रेजों से हिंदुस्तान में युद्ध करने वाले लाली लाटसाहब के वारिस हैं वे। उनकी नसों में फ्रांसीसी राजकीय रक्त प्रवाहित हो रहा है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now