मांसभोजनविचार के प्रथम भाग का उत्तर | Maansabhojanavichar Ke Pratham Bhag Ka Uttar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.81 MB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम भाग का उत्तर ॥ श्पे नाध्क+ ४ जज जग । ऋतदशन से चीथे छठे श्राठवें दशमे झथवा बारहबे दिस दोपहर पौछे महीने भर पहिले से ब्रस्मचारो रहा पसष घी दूध मीठा मिला के शालिनामक चाबणों का भात वा खौर खा के रात्रि के समय शरीर म घी लगा कर महिने भर पहिछे से ब्रह्मचारियी रही शीर भोजन के अन्त मे जिस न ने उसी दिन तेन शरीर उष्ठद के संयोग से यने घड़ा वा कर चीरी प्रादि खाये हैं श्ीर शरौर में तेल लगाया हो ऐसी ं स्त्री के पास गर्भोघानाये जआाबे शीर गर्भाधान से पहिखे । हु विचार के साथ शान्ति झादि घ्मे का यथोचित उप- देश करे देवर भक्ति शादि को शोर चित्त लगावे । शव उपदेशक जौ था मांसाशी लोग बतायबें कि सुश्रत के गभो घान प्रसंग में सांसभन्षण कहां लिखा है ? मांमसभसण की सावश्यकता लो दूर रही किन्त मांस का नाम तक भी नहीं साया । तब हम पछते हैं कि सांसोपदेशक जो क्यों कु दृते फांदूते थे ? । स्वामी जो महाराज ने सुश्रत का घाश्नय लेना लिखा सो तो उन महात्मा की श्ार्यों पर रुपादरष्ि | ठीक है ऐसा शहद बिचार गर्भोघानाये सुश्रत से भिन्न कहां ं मिल सकता है ? । पाठ महाशया शोचिये तो सही सुश्रतकार ने गर्भाधान के समय के ता शद्ठू सात्विक श्राहार न लिखा है ? श्रीर सांस सद्यादि निरु्ठ अनक्षय चस्तथों का ऐसे शभ समय मे नाम भी नहीं लिया । तो सिद्ध होगया | कि गर्भाधानादि संस्कारों में झायुवद् की सम्मति वा बि- | लक पलीवशााला हलवा
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