वैदिक धर्म | Vaidika Dharma

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Vaidika Dharma  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न वेदोक्त मद । ( केखक- भी पं० नहमुदेवदार्मा साहिल भूषण शास्त्राचार्थ ) जासेग्य-मंद्रि पनवेक कुछाबा के जनबरी मास के भड्क में श्रीन वे० सिर सिं छेलें महोदयनें आयों के जादार में पंय शीषंक देकर एक संक्षिप्त ेख छिखा है । भापने मन् भार फछ-फूल को भावों के भा हार में स्थान देकर बढ़ी कप की है। पर भापने आया के भाइार में विधिध प्रकार के मांस को भी गिन कर भनथे किया है । यद्यपि छुछ छोग माँस भी भायों का भोजन बताते हैं पर सीस की सर्वश्र निन्दा की गई है। वैधक दशास्त्र में माँस के गुणद्दोष निरुपित हैं पर इतने से बढ खाद्य नहीं माना ज्ञा सकता । महर्षि चरक छिखते हैं- ४ इुहचर्णगल्धरसस्परद विधिविहितमल्नपाने प्राणिनों प्रायिसंशुकरानों प्राणमाचक्षते कुददाछा ... तर्छरीरघातुन्यू- इचरवर्णे रिद्रूपप्रसादकर यथाक्तमुपसेव्यमान चिपरीत- मदिशाय सम्पयते ॥३॥ तस्माद्धितादिता ददो घनार्थ- मज्नपानविधिम झिलेनों पदेश्या मः ॥। ॥ चरक० सूत्रथ् भ० र७ चयरकशास्त्र में हिताहित के बोधघाथ सब पदार्थों का गुण-दोष वर्णन किया गया दे | विधिपूर्णक से वित भन्नपान दितकारी भोर विपरीत भदितिकर है । यदि चरक के इस माँस-प्रकरण को धर्म माना जाय तो-- गध्य केवक वातेषु पीनेखे विषस-उचरे । झुष्ककास-श्रमाद्यप्ि-मासक्षयदित च. ततु ॥ चर सूत्र० भ० २७ छो० ८०॥ के अनुसार गो-ांस भी मदय ठहरेगा | भापने आयों के ऐय में सोम सुरा पाइक्त मस्थ को विशेष रूप से गिना हे । बेद के प्रमाण से इनके स्वसूप- निर्णय की चैछा की है। यह सत्य है कि थे सोम सुरा भादि मदकारी हैं पर यदद मद कैसा है इस पर न भापने विचार किया न भोर लोग करते हैं । मद्य । मपुकारी पड़ाव को मद कहते हैं । वेद में मद धाहु के योग से प्रदू भौर मय दोनों शब्द भाते हैं । मद या मद दोनों झब्दों का वाच्य मदकारी पदार्थ है । मद घाब्दू मदी इवे इस धातु से सिद्ध किया गया है। द्रस की ब्याख्या प्ादन्त्यनेन यह की जाती है। भरथात्‌ जिस पेथ के पीने से मनुष्य के हृदय में उत्साह भोर भानम्द बढ़े बह मध कदकाता है। ऐसा मद तो अन्न भी बढ़ाता है यधा- दुन्द्रेहि मत्स्यन्धसो दिश्वेभि। सोमपष मिः । मं असिष्टिरोजसा ॥ (ऋं. 11९ 0 साय - अन्थोमिः अन्ने मत्सि माय दृष्टो भव ॥ सोम-रस भकेठा पिया जाता है भीर उस के साथ कोई न कोई भन्न भी मिला होता है । इन्द्र इस भन्न से मद में भा जाता है। ढोकिक मद्य की कर्पना भी यहीं से चकीं है । यह भी दुई उत्पन्न करता है । पर सोम के पीनेखे जड़ा बुद्धि भोर बककी बुद्धि होती है मय पीनेसे बुद्धि का नाश शरीर का ट्लास भर उत्साइ की क्षीणता होती हे। इम दोनोंकी तुरुनाके लिए कुछ प्रमाण देते हैं- (१) दप नः सबना गहि सोमस्य सोम्रपा। पिच । सोदा इदू रेचतो मद ॥ ( कऋन 9१९२ नधेन- दें सोम पीनेबाले इन्द्र इमारे यज्ञ में भा । सोम-रस पी सोम पीने पर तेरा मद गो-भाद़ि पशु या न प्रदान करता है । (२) प्माशुमादयवे भर यशक्िय नूमादनम्‌ । पतयन्‌ मन्द्यत्लखम्‌ . (ऋ० भर ) भयथे- दे यजमान दू इस इन्द्र के छिये झरनेवालें इन के साथी बज की शोभा बढानेदाछे महुप्पों को हित करनेबाऊे सोम का प्रबस्थ कर ॥। (१) इदं बसों सुतमन्वः परिदा सुपूरणमुद्रमू । नाभविन्‌ ररिमा ते ॥... (कऋ० ८।२१ ) सर्थ- दे इख्द तेरे किये सोमनरस बनाय। गया है मू पेट-मरकर पी है निर्मव इस यह मेस से में करते हैं |




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