हिंदी मुक्तावली | Hindi Muktavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.77 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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३-सशोर
उठो-उठो अब प्यारे ब्यो, हुआ मनोहर भोर !
। स्वर्ण-सरीखा पीला गोला, लखो पूर्व की ओर ॥
' देखा, इसे देखकर ही सब, नर, पथ, पष्ठी-मोर-
आतम छोड़ कुतृहल में पर, करते हैं सूद शोर 1
रही नहीं अब शान्तिमयी निधि, दूर हुआ तम पार 1!
सारे तारे छिऐ लजा कर, देख सूर्य की कोर ॥।
देग्दे, गायें यछद़ लेने, चतीं विपिन की ओर ।
चलने लगे चटोही भी अब, इुआ जान कर भोर 1!
अच्छे लदके मुंद भोने को. चड़े नदी की ओर ।
कई पाठ पते हैं अपना, सुन लो उनका सर ॥।
फिम्तु युरे लड़कों पर अप नक, छाई निद्रा घोर 1
उठने नहीं उठाने पर भी, लोग रहे धशसोग 11
देखो, श्रापय साथ आदि सब, खरे उमयन्फर डोर!
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पेय के सम्पुय होकर, करने विनय अयोर्॥
दी और नालों के नंद पर. मैदानों की थोर
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पतला शुद्ध चापू बहता हूं, टरव मनाहुर
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यहीं दायु हैं इद्धि ददू
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मन में सुर, उन्नाह, चहुर्ता, मर्दों लिन्द दटोर
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