जायसी - ग्रंथावली | Jaysi Granthawali

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Jaysi Granthawali by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ जायसी-ग्रंथावली भी पाठ-संशोधन बहुत किया गया है जिससे पूव का पाठ बहुत विक्ृत हुआ है। फिर भी पूर्व का श्रधिकतर पाठ जाना जा सकता है श्र इसलिए उसका उपयोग किया जा सकता है । तृ० २ यह प्रति ६३2८४ हू झाकार के २११ पत्रों में हैं। इस प्रति में अंत का दोहा प्रतिलिपि करने से रह गया है श्र पुष्पिका नहीं है । प्रति सत्रहवीं या श्रठारबीं शताब्दी की शात होती है । लिपि फ़ारती है । यह बहुत सावधानी से लिखी नहीं गई हे--कहीं-कहीं पर दोहे छूट गए हैं । एक स्थान पर प्रति खंडित भी है जिसके कारण इस का कुछ श्रंश नहीं है। यदद प्रति भी कॉमनवेल्थ रिलिशन्स श्रॉफ़िस लंदन में है श्रौर वीं से प्रस्तुत कार्य के लिए मुकके मिली थी । त० ३ यह प्रति १२०९८ श्राकार के ३४० पत्रों में समास हुईं है स्प्ौर पूणण है। यह नागराक्ष्रों में है श्रोर श्रत्यंत सुलिखित है । केवल एक स्थान पर कुछ पक्तियाँ श्रधूरी श्र कुछ पूरी छोड़ दी गईं हैं कारण कदाचित्‌ यदद था कि श्रादर्श का पाठ वहाँ श्रपाख्य था । जिल्दर-बंघाई की नुयियों के कारण श्वश्य कई पत्रे अपने स्थानों से हट कर श्रन्यत्र लग गए हैं । एक स्थान ( ४४० छुंद ). पर इस में अंतिम पाँच पक्तियाँ श्रन्य स्थान (छुंद ४४४५ ) की दुहरा दी गईं हैं । इस प्रति में ३४० चित्रों के पृष्ठ हैं तर ३४० लिखाई के श्रौर समस्त चित्र कौशलपूरवक बनाए गए हैं। पुष्पिका में तिथि नहीं दी हुई है केवल लिपिकार का नाम थान कायथ तथा स्थान मिर्जापुर दिया हुश्रा है। यदद प्रति भी कॉमनवेल्थ रिलेशन्स _ शॉफ़िस लंदन की है श्रौर वहीं से मुझे प्राप्त हुई थी । _ च० रै यह प्रति ८ (४ श्राकार के पत्रों में जिखी गई है । पत्र- संख्या नहीं दी गईं है । किन्ठु बीच में कुछ पत्रे (जिनमें संपादित पाठ के _ छुंद २६०-र८८ ४र८-४५६ इ०६-४२४ ते हैं ) नहीं हैं । यदद फ़ारसी त्रच्चरों में अत्यंत सुलिखित है । इसके लिपिकार ने श्रपना नाम ईश्वरप्रसाद निवासस्थान गंगा गोरौनी लिपिकाल ११४५ दिजरी तथा लिपिस्थान करतारपुर बिजनौर दिया है । यह प्रति श्री गोपालचंद्रथिंद झॉफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी सेक्रेटेरियट लखनऊ की है श्रौर उन्हीं से मुके प्राप्त हुई है । इस प्रति के पाठ में कददीं-कहीं हस्तत्ेप हुश्रा दै--पूर्व के पाठ को किंचितू बंद लने का यरन किया गया है किंतु यह श्रधिक नहीं है श्र पूर्व का पाठ प्राय£ पढ़ा जा सकता है ।




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