रत्नाकर और उनका काव्य | Ratnakar Aur Unaka Kavya

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Ratnakar Aur Unaka Kavya by उषा जायसवाल - Usha Jaiswal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ 1 क्रपूघ्न ही इम् रजिस्ट्रार काननपों सडर सायय पाानूनयों अपर शिरदावर कॉलन हो के पद पर पठोक्षतियाँ माप होती गई 1 सच १8२३ ई० से छाए काशी विण्य विद्यासय से घाव्यापर्स के रूप से अध्यापस फरते रह । झन्त में वहाँ से नी उयसाश प्रा कर लिया । १ साथ १६०७ ई० को आपने इस सश्वर बारर यो स्याराकर चिंर विास प्राप्त किया । निस्सदेह इनके विधन से हिंद साय ने प्फ अमूल्य निधि सो दी । आपने कई बार हिंदी-साहित्य सम्मेलन तथा हिंदी सच्त्यि संसद की सध्यलवा का यद्यपि थे श्रत्वीन सस्हति के पोषक थे तथापि नवीन विचार उदाहराने चिलायत बना बाल विधवा विचार अताड्वार सादे समाज सुधारों का एन लेते थे । झानमगत की ससकत पाठशाला एय सनातन घम सभा के सचालफें से सी यह प्रसुग थ 1 ये बंगला के भी सच्छ जाता थे। राउगपिसास मेस के सासिक बादू रामरीन सिंद ये ापकी बडा मित्रता थी तथा इनके अभेर थे थे इसी प्रेस से प्रफाशित हुए । इनका कृतियोँ लगभग ५० हे । इनमे नाइक उपन्यास निबंध काम्य सथा नीति उादि विंपयों के अन्थ है । कान्य-्सस्थ हा सच अधिक हैं । घ्जसापों फाव्य में रसकक्‍्लस प्रधान है । इनयी प्रसिद्ध खड़ी बार्ल। चोत्र में अधिक रो जाने के कारण इनकी घज- काव्य में कम ख्याति हुई। खड़ी बोली में प्रिययवास एक खनुपम एवं अम्रल्य अन्य है । मथस इन्होंने घजसापा स ही साहित्य केत्र में प्रवेश फ्िया था । निजामाबाद में सिक्खों के मइत बाबा सुसेरसिंह जी ने एक फचि सम स्थापित रिया था । इससे ही इन्हें कान्य-रचना की प्रेरणा घाप्त हुई । ये अपना रस इसी कवि समाज में पढए करते थे इस समय ही इनका उपनाम हरियौ पर इनके नाम के ्हुवाद-माव से पढ़ा था । इनकी बज की फ्विताएँ समय समय पर पत्रिकश्या सें सकाशिस होता रहती थीं | स्सफलस एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ हे । श्र तक रस की विवेचना करने समय माय लोग केवल श गार रख फा ही विस्तृत चर्शन करतें थे तथा लय रसो पर विशेष ध्यान सहीं देते थे । रसकलस में हर्थीध जी ने सभी रसों को समान स्थान प्रदान किया है । इसके अतिरिंक्ष इन्होंने ही सर्वप्रथम रस की विवचना इस अ्रल्थ में गद्य के साभ्यम से की । प्राचीन नायिकाझ के अतिरिक्त डुछ नवीन नायिकार्ओों का भां चर्खत इस अन्थ में किया राया ह ्जो नवीन युग के अनुकूल. हे--उदाइरणारव परिवार घेसिफा धर्म मेमिका शेश मेंसिका आदि |




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