महाप्रस्थान के पथ पर | Mahaprasthaan Ke Path Par
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31.26 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
प्रबोध कुमार सान्याल - Prabodh Kumar sanyal
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हरिकृष्ण त्रिवेदी - Harikrishna Trivedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सहाप्रस्थान के पथ पर १ उच्छवास-सर्वस्व छोगों को भी में जानता हूँ अतः अपने को भी उनसे अछग होते नहीं देख सकता । आज सभी अच्छे साठूम हो रहे हैं। जो बन्घु हैं जो विरूप हैं जिनको छोड़ आया हूँ जो जन्मभूमि मेरे जीवन का आधार है समाज और बस्ती अप्रसिद्ध और अनांदत कोई भी तो अपना-पराया नहीं । आज अपना-पराया नहीं । आज मेरा संन्यासी का वेश है किन्तु वह केवछ परिच्छेद है केवछ बाह्य आवरण है देश की बात सोचते ही इस समय शरीर के छाखों स्नायु झनझन करकेब्बज उठते हैं । सहज ही में उस दिन जिस ममता का आश्रय छोड़कर चछ दिये उदासीन होकर जिनसे विदा ढेकर चढे आज इस संन्यास के कृत्रिम आवरण के नीचे विच्छेद-कातर हृदय बोछता है तुस छोग हमें भूठ मत जाना हम हैं बचे हैं । ः एक दिन सभी मरेंगे किन्तु निश्चिह्न होकर मिट जाने की तरह सान्त्वनाहीन ग्त्यु और कुछ नहीं हम निरुपाय दुबंढ भाग्य खिलौने फिर सी हम निरन्तर बचे रहना ही चाहते हैं । यही बचने की चेष्रा समस्त प्रथ्वी पर अविश्रान्त रूप में चछ रही है । कोई बचता हे नव-जीवन-सृष्टि के बीच में कोई शिल्प और साहित्य में आत्म-प्रकाश करते हुए कोई ख्याति और या के लिए बचना चाहता है -यहद जो समाज सभ्यता विज्ञान साम्राज्य-प्रतिष्ठा हैं इनके मूठ में मनुष्य की बचने की अत्यन्त पिपासा रहती है । जो जीवन को असार समझकर मोक्ष-प्राप्ति की झुधा में तीथे-श्रमण में घूमते रहते हैं वे भी बचे. रहना चाहते हैं उसमें भी रास्ते की घर्मशाछाओं में अपना-अपना नाम लिखे रखने का उनका कैसा अपरिसीम आशरह और अंध्यवस्राय दिखाई देता है । श्रह्चारी उठा और बोछा--चढों दादा शायद बारह बजे का समय हो गया है निश्चय ही आपको भूख छगी है । निःवास छोड़कर झोला ओर कम्बढ उठाकर खड़े हो गये। बोला- कितने मीछ तय कर चुके होंगे न्रह्मचारी ? रास्तें में मीठ-पत्थर हैं । श्रह्मचारी सन ही सन हिसाब उगाकर बोछा--उढगथग पाँच मीछ । और कुछ दूरी पर गरुइ चढट्टी आ गई । एक बड़ी धर्मशाला है । नीचे एक दूकान उसमें अधिक मूल्य पर सभी खाने की चीजें मिछ जाती हैं । घर्मशाछा के पास एक सुन्दर बगीचा और ताछाब है। पास में पहाड़ से एक झरना बहता हे उसका ही पानी इस ताछाब से यात्रियों के छिए एकन्न किया जाता है । चट्टी में ठददरनेवाढों के छिए
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