जीव - जगत की कहानिया | Jeev Jagat Ki Kahaniya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.08 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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नरेश वेदी - Naresh Vedi
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प्रो.पं. मन्तेय फ़ेल - Prof. Pt. Mantey Fel
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इससे यह वात मेरी समझ में श्रा गई कि मछली की घात में कौड़ित्ली हमेशा एक ही टहनी पर वयों वैठती हैं। जी हां मुझे तो ये नीले परिंदे ही पसंद हैं बूढ़े ने फिर कहा। ये. ईमानदार. जानवर हैं न कि इन धारियोंवाली गिलहरियों की तरह चोर। ये गिलहरियां भी हमेशा खाने लायक किसी-न-किसी चीज़ को चुराने श्रौर उसे ज़मीन में श्रपने विलों में छुपाने की घात में ही रहती हैं। सुनिये किस तरह ये त्ुम-तुम कर रही हैें। जानते हैं ये क्यों इस तरह शोर कर रही है? सुखी रोटी के इस थैले को देखिये जरा जिसे मेने उस टहनी पर लटका रखा है। एक-दो दिन पहले की वात है मेने थैले को तंवू में ही रहने दिया गिलहरियों ने उसे ढूंढ लिया श्रौर अ्रपने दांतों से उसमें छेद कर दिया। उन्होंने पंजों से श्रपने मुंहों में रोटी का चूरा टूंस लिया श्रौर गाल फुलाये लगीं झपने विलों की तरफ़ दौड़ने । श्ररे साहब थैला ऊपर तक भरा हुमा था श्रौर जब में लौटकर श्राया तो वह इतना खाली हो चुका था कि हिलने से रोटी की खड़खड़ाहट सुनी जा सकती थी। इन धारियोंवाली उचकिक्यों ने लूट लिया था मुझे श्रभी भी मेरे थले के नीचे कम-से-कम तीस गिलहरियां होंगी । वें उस तक पहुंच नहीं सकती मगर उनके मुंहों में लार ज़रूर श्रा रही होगी। बूढ़े. मात्वेई मिनट-दो-मिनट खामोश बैठे. गिलहरियों के लुम-न्ुम शोर को सुनते रहे श्रौर फिर बोले उनमें से कई गिलहरियां पहले काफ़ी देर थेलें के नीचे ही उछलती रहीं श्रौीर फिर यह कहिये कि खाली मुंह ही भाग गईं श्रौर इसीलिए पशु
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