कबीर साहेब की शब्दावली भाग - 1 | Kabir Saheb Ki Shabdawali Part - 1
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.86 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञीवन-चरित्र कबीर साददेब के पिता का नाम नूरझलो और माता का नाम नीमा था जो काशी में रहते थे । किसी किसी का कथन है कि ज्लीमा के पेट से कबीर साहेब पैदा हुए परन्तु बिशेष कर ऐसा कहा जाता है कि नूरझली जुलाहा गंगा नदी अथवा लहदरतारा तलाव के किनारे सूत थो रहा था कि उस को एक बालक बहता दिखाई दिया उसने उसको निकाल लिया झर झपने घर लाकर पाला पोस्रा । पंडित भानुप्रताप तिवारी चुनारगढ़ निवासी जिन्हें ने इस बिषय में बहुत खोज किया है उन के अनुसार कबीर साहेब की झासल मा एक हिन्दुनी बिघवा थी जो सन् १४१४ ईसवी में रामानंद स्वामी के द्शन को गई । द्डवत करने पर रामानंद जी ने श्रशीर्बाद दिया कि तुम को पुत्र हो । स्त्री घबरा कर रोने लगी कि में तो बिधवा हूं मु पुत्र क्यॉकर हो सकता है । रामानंद जो बोले कि झब तो मुंह से निकल गया पर तेरा गर्भ किसी को लखाई न पड़ेगा । उसी दिन से उस बिधवा को गे रहा और दिन प्रूरा होने पर लड़का पैदा हुआ जिसे उसने लोक निन््दा के डर से लंदरतारा के तलाव में डाल दिया जहाँ से उसे नूरु जुलादा निकाल कर लाया। कबीर कसौटी के झ्रनुसार जेठ की बड़सायत सोमवार के दिन नीरू ने बच्चे को पाया । बालपने ही से कबीर सादेव ने बानी द्वारा उपदेश करना शारम्भ कर दिया था । ऐसा कहते हैं कि कबीर साहेब रामानंद स्वामी के जो रामासुज मत के झवलंबी थे शिष्य हुए । यद्यपि कबीर साहेब स्वतः संत थे श्रौर उनकी गति रामानंद स्वामी से कहीँ बढ़कर थी तो भी गुरू घारन करने की मर्यादा कायम रखने को उन्हें ने इन को गुरू बना लिया । कहते हैं कि रामानंद स्वामी को अपने चेले की कुछ ख़बर भी न थी । एक दिन वह झपने झाश्म में परदे के भीतर पूजा कर रहे थे ठाकुर जी को स्नान करा के बस्तर श्र सुकद पहिरा दिया परंतु फूलेँ का हार पहेराना भूल गये इस सोच में पड़े थे कि यदि मुकट उतार कर पहिरावें तो बेझदबी है श्औौर मुकट के ऊपर से माला छोटी पड़ती थी कि इतने में ब्योढ़ी के बाददर से झावाज झाई कि माला की गाँठ खोल कर पहिरा दो । रामानंद स्वामी चकित हो गये श्रौर बाहर निकल कर कबीर साहेब को गले लगा लिया श्रौर कहा कि तुम दमारे गुरू हो । कबीर सोहेब के रामानंद जी का शिष्य होने से यदद न समभना चाहिये कि वह उन के घ्म के झनुयायी थे--उन का इष्ट सत्य पुरुष निमंत्र चेतन्य देश का धनी था जो ब्रह्म और पारब्रह्म सब से ऊँचा है । उसी की भक्ति श्र उपासना उन्हें ने दढ़ाई है श्रौर झपनी बानी में उसी परमपुरुष श्ौर उस के चुन्यात्मक नाम की महिमा भाई है और इस के व्यतिरिक्त जो शब्द कबीर सादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं वह पूरे या थोड़े बहुत क्षेपक हैं ।
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