पंचास्तिकाय टीका भाग 1 | Panchastikay Tika भाग 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.95 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र.श्स्ू १] त्रिसूत्नोप्रकरणस । १०१५ करचरगादिमति शरीग्ज्ञानमिति विशेषतः गुगेषर केतक्याट़ो सौरभन्ञानं शट्टादी श्वेतज्ञानमित्यादि कमंणि च वातुलेन तिष्ठता तौब्रबेगासंप्कतैन चल- व्जलादिस्वच्छविलोकनविरक्षिणा यददुव्य॑ चलतीत्युप- लग्यते तत्तधिति ॥ एवं तेष्ठ विशेष ते ते विशेषा व्यमिचार्गविरो- घिनो न प्रतिपदमनुक्रमितं शक््यन्त । तदेव॑ तत्त- व पा. समन स्व बम्पर पन्ना पिन जय नर + ० बमथ जनक पर. री अ्यनजननणम्मस्न अनभिप तत्र तषु तज्जातीयेषु मध्य द्रव्य तावत्तज्ञातीयत्वमित्यथ । नच गन्धान्तरवति गन्धान्तरवत्त्वज्ञानषु व्यभिचार प्रथिव्यंश तषार्मापि प्रमात्वात् ।. ननु करचरणवति शरीरज्ञानत्वादित्यत्र करचरगण- वत्तं नोपलबक्तणं व्याहत्तोपलच्याभावात् । न विषयतया ज्ञनविश- परगं करचरणव त्त्वप्रकार कन्ञानत्वस्थ भ्रम ४पि सत्त्वात् । इटं शरोद- मिति ज्ञान शरोरत्वप्रकारकतया तटसिड्य । नापि विषयविशेषणण करचरणवद्िषियकशरं। रज्ञानत्वस्य व्यभिचारात् शरोरभ्वमस्यापि वस्तुत करादिम दिषयकत्वात् । नापि कररादिशून्य यच्छरौत्वन ज्ञान॑ तदन्यत्व सतीति विवक्षितं शून्य इत्यत्र विषयत्वं सप्तस्यथ इति करादिशून्यविषय कशर र ज्ञानान्यशर रज्ञा नत्वा दित्यथ तथा चाखिंदडि शरोरज्ञानस्य. तच्छन्यशरोरत्वादिविषयत्वनियमात् । मंवम् । करचरगघदिशष्यकशरी रत्वप्रकारकज्ञानत्वस्य लिडत्वात् शरोरभ्वम करचरणवतः शरोरस्य विशेषधस्वात् । बल चक्रवत श्४
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