वैध सार | Vaidh Saar

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Vaidh Saar by पंडित सत्यंधर जैन - Pt. Satyandhar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ट. ] प्रयुक्त होते थे । ्रणवस्ति, वस्तियंत्र, पुष्पनेत्र, (लिंग में श्लौषघ प्रविष्ट करने के लिये), शलाका - यंत्र, नखाकृति, गर्भशंक, प्रजननशंकु (जीवित शिझु को गर्भाशय से बाहर करने के लिये), सर्प- मुख (सीने के लिये) आदि बहुत से यन्त्र हैं । ब्रणों और उद्रादि संबंधी रोगों के लिये मिन्‍न-मिन्न प्रकार की पढ़ी बांधने का भी वर्णन किया गया है। गुदश्रश के लिये चमबंधन का भी उल्लेख है । मनुष्य या घोड़े के वाल सीने आदि के लिये प्रयोग में आते थे ।. दूषित रुघिर निकालने के लिये जांक को भी प्रयोग दाता था । जांक की पहले परीक्षा कर ली जाती थी कि वह विपेली है झथवा नहीं ।. टीके के समान मूछा में शरोर के तीक्ष्ण असर से लेखन कर दवाई के रुघिर में निला दिया जाता था । गति न्रण ,51::प8) तथा अबुदों की चिकित्सा में भी सूचियां का प्रयोग होता था ।. त्रिकूचक शस्त्र का भी कुप्र आदि में प्रयोग हेता था । आजकल लेखन करत समय टीका लगाने के लिये जिस तीन-चार सुइयां वाले औजार का प्रयोग हाता है, वह यहीं त्रिकूचेक है । वतेमान काल का (1०000:-टोटएदण) पहले दंत- शंकु के नाम से प्रचलित था। प्रादीन आये कृत्रिम दॉती का बनाना और लगाना तथा क्त्रिस नाक चनाकर सीना भी जानते थे । दॉन उखाड़ने के लिये एनीपद शस्त्र का वणान मिलना है | मोतियाबिंद ((७1:तव८) के निकालने के लिये भी शस्त्र था । कमलनाल का प्रयोग दूध पिजासे अथवा बगन कराने के लिये हाता था, जा आजकल के (5(०008८0 [फाताए ; को चाय दता था ।” [ प्छ्ठ १९०-१२२ ] इसी प्रकार भारतीय प्राचीन सपचिकित्सा और पशुचिकित्सा भी अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं । सिकन्दर का सनापति नियाकस लिखता है कि यूनानी लोग सपविप दूर करना नहीं जानन, परन्तु जो मनुष्य इस दुर्घटना में पड़े, उन सब का भारतीयां ने दुरुस्त कर दिया । के दाहफ्रिया एवं उपवास चिकित्सा से भी भारतीय पूर्णतया परिचित थे ।. शॉथरोग में नमक न दन की बात भी भारतीय चिकित्सक हजार बप पूव जानते थे ।. हमार पृवजों का निदान उच्चकोटि का था ।. साघवसिदान' एज मो संसार में अपना खास स्थान रखना है । झुद्ध जल का संत्रह और व्यवहार कसे किया जाय, अप द्वारा कुओं का पानी साफ करना, महामारी फेलन पर क्मिनाशक ्पधां के ह्वारा स्वच्छता रखना आदि बातां का उल्लेख 'मनुस्सति' में स्प्ट मिलता है। आयुर्वेद में शरोर की बनावट, भीतरी अवयर्वो, मांसपशियां, पुट्रां, घमनियां और नाड़ियों का भी विशद वन उपलब्ध होता है। वेंद्य निषंटुओं में खनिज, वनस्पति झ्ौर पयुचिकित्सा-संबंधी औपधां का बृहदू भाणडार हैं। मारतीय अयर्वेद- विशारदां को शरीर-विज्ञान का ज्ञान भी पयाप्र था। अन्यथा ये स्त्री, परुप, पशु, पक्षी आदि की चित्ताकपक मूत्तियां को नहीं बना सकते थे ।. भारतीयां का रासायनिक ज्ञान आशातीत कि ह् 6 2३ छू चाइज ; हिस्ट्री श्राफ मंडिसिन ; '




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