उपदेश छाया और आत्मसिद्धि | Updesh Chhaya Aur Atmsiddhi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Updesh Chhaya Aur Atmsiddhi by राजचन्द्र - Rajchandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजचन्द्र - Rajchandra

Add Infomation AboutRajchandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
इ४रे 1 उपदेश छाया ९ सबबृत्तियोंके उत्पन होनेंके ठिये जो जो कारण-साधन--वताये होते हैं उन्हें नम करनेको ज्ञानी कभी कहते ही नहीं । जैसे रान्िमें भोजन करना हिंसाका कारण मादम होता है इसलिये ज्ञानी कभी भी आज्ञा नहीं करते कि दू रात्रिमं मोजन कर । परन्तु निस जिस अहमावसे आचरण किया हो और. रान्रिभोजनसे ही अथया इस अमुकसे दी मोक्ष होगी अथरा इसमें ही मोक्ष है. ऐसा दुराप्रदसे मान्य किया हो तो मेसे दुरा्रहको छुड़ानेके िंय ज्ञानी-पुरुप कहते दें. कि इसे छोड़ दे क्ञानी-पुरुपोंकी आक्ासे वैसा ( संन्रिभोजन-त्याग आदि ) कर और बसा करेगा सो कल्याण हो जायगा अनादि काठ्से दिनमें और रातमें भोजन किया हे परत जीयको मोक्ष हुई नहीं इस काठमें आसघकताके कारण घटते जाते हैं और प्रिरावकताके ठक्षण वढते जाते हैं | केशीलामी बड़े थे और पार्सनाय स्वामीके शिप्य थें तो भी उन्होंने पौँच महात्रत स्वीसार किये थे । केशीस्वामी ओर गौतमस्वामी महार्चारवान थे परन्तु केशीस्वामीने यह नहीं कहा कि म दीक्षेमि बड़ा हूँ इसलिये तुम मेरेसे चारित्र अदण करो | फ्चिरवान और सरल जीमको जिसे तुरत ही -कन्याणयुक्त हो जाना है इस प्रकारकी बातका आग्रह होता नहीं । कोई साधु जिसने अज्ञान-अपस्थापूर्क आचार्षपनेसें उपदेश किया दो और पीठेसे उसे ज्ञानी-पुरुपका समागम होनिपर वह ज्ञानी-पुरुप यदि साधुको आज्ञा करे कि जिस स्थानमें तूने आचार्य- पनेसे उपदेश किया हो व्दों जाकर सबसे पीठे एक कोनेमें बैठकर सर छोगोंसे ऐसा कह कि मैंने अज्ञानमायसे उपदेश दिया दे इसडिये तुम लोग भूछ खाना नहीं तो साघुको उस तरह किये बिना छुटकारा नहीं है) यदि वह सायु यदद के कि मेरेसे ऐसा नहीं हो सकता इसके बदढे यदि आप कह तो मैं पद्ाइके ऊपरसे गिर जाऊँ अथया अन्य जो कुछ कहो सो करूँ परत वहाँ तो में नहीं जा सकता --तो शानी कहता हे कि कदाचधित्‌ दू छाख वार भी पर्पतसे ऊपरसे गिर जाय तो भी बह किसी कामका नहीं है । यहाँ तो यदि पैसा करेगा तो ही मोक्षकी प्रानि होगी । बेसा सिये बिना मोक्ष नहीं है । इसडिये यदि दू.जाकर क्षमा मॉँगे तो ही तेरा कल्याण हो सकता है | गीतमस्वामी चार ज्ञानके धारक थे । आनन्द श्रावक उनके पास गया । आन द -श्रापकने कहा कि मुझे ज्ञान उत्पन हो गया है । उत्तरमें गोतमस्वामीने कहा कि नहीं नहीं इतना सम हो नदी सकता इसडिये तुम क्षमापना ढो | उस समग्र आनन्द श्रारकने नरिचार किया थे मेरे मुझ हैं समय है इस समय ये भूछ करते हों तो मी आप झूठ करते हो 7 यह कहना योग्य नहीं । ये गुरु दें इसछिये इनसे शातिसे ही बोटना ठीफ है । यदद सोचकर आनन्द श्राररने कहा कि महाराज सद्धतरचनका मिच्छामि दुकड अधया असद्भतनचनका मिच्छामि हुकिड ४ /ॉतमने कहां कि जसदूततचनका ही मिच्छामि दुक्ड होता हे । इसपर आनन्द श्राउक़ने रूटर सि. महाराज 1 मैं मिच्छामि हुकड ठेने योग्य नहीं हूं । इतनेमें गौतमसामी बह कक ट पूँठा । ययपि गौतमस्वामी स्वय उसका समाधान करे थे ही रहते हुए वैसा करना ठीक नहीं इस कारण उन्होंने /महावरित्वाम्नि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now