सिद्धि के सोपान | Siddhi Ke Sopan

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Siddhi Ke Sopan by राजचन्द्र - Rajchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“सिद्धि के सोपान' के मूल पद्च अ्पुवं श्रवसर अपुर्व अवसर एवों. क्यारे आवक ? क्यारे थइशुं बाह्मास्तर निरप्रन्य जो ; सर्वे सम्बन्घनूं बंधन तीकण छेदी ने / विचरशुं कव महापुरुषने पंथ जो ॥१॥ सर्वेभावथी औदासीन्य चुतति करी ; मात्र देह ते. संयम-हेतु होय जो ; अन्य कारण अन्य कथु कल्पे नहि » देहे पण किचितु सूर्च्छा नव जोय जो ॥1र॥ दर्शनमोह व्यतीत थई उपज्यो वोध जे ; देहसिन्न केवल चेतन्यनूं ज्ञान जो ; एथी प्रक्षोण चारिन्नमोहू विलोकीए ; वर्तें एवं शुद्धस्वरूपनुं घ्यान जो ॥दे॥ आत्मस्थिरता श्रण संक्षिप्त योगनी » मुख्यपण' तो बरतें देह॒पर्यन्त जो घोर परिषहू के उपस्ग मये करी ; आवबी शके नह ते स्थिरतानों अन्त जो ॥ संयमना... हेतुयी .... योग-प्रवर्तना ; स्वरूपलकफ्षे जिन-आज्ञा आघीन जो ; श्दे




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