षड द्रव्य संग्रह | Shad Dravya Sangrah

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Shad Dravya Sangrah by गिरिजा शंकर मेहता - Girija Shankar Mehtaपं. रामचंद्र मुनि - Pt. Ramchandra Muni

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पं. रामचंद्र मुनि - Pt. Ramchandra Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे निथयवी तो आत्मा सिंद छे जो के व्यवहारदृप्टिए राग- देपना परिणामदशाद्‌ असिद्ध छे पण निश्चयुरृप्टिए तो ते सिद्ध छे तेमज आत्मा दि्वनी उपर गहि करनारों उे-ऊ्ब गहि- मान छे जो के व्पवद्दारवी कर्मसयधने लीघे उच-नीच-तिर- उी गति करे छे पण निश्चय अपेक्षाए तेम नथी २ आ पीजी गाथामा जीवद्रव्यन्ु नव प्रकारे व्यारूयान सापान्परूपे जणाव्यु छे तेन नवपकारतु विशेष व्याख्यान हवे पठीनी बार गाधाओथी फरे ठे -- सून--(गाधा) सिक्ाले चडपाणा इदियवलसाउ आणपाणो य ॥ चवहारा सो जीवों णिच्ठयणयदोंदहुचेयणाजर्स ॥3॥ (झा गायामा जीव चाब्दनों अथे विस्तारथी दर्दाच्यो छ ) अर्थ --भूत भविष्प ने वहमान ए नणे झाऊमा पघाण चार छे पे इन्द्ियपाण चीजों चठप्राण नीनो वासो- च्छास पाण अने चोथो आयु माण छे अर्थात्‌ शुद्ध चेतना- रुप निश्वयपाणथी विपरीत एवों जे अशुद्ध चेतनारूप माण से इन्द्रियाण उठे अनतपीयेरूप निश्वयपाणथी विपरीत ण्यो जे मनोपखू-बचनयल-फायरररूप धाण ते घलमाण डे भ नादिं अनत आत्मद्रव्पनी सत्तारूप निश्चयमाणथी सिपरीत सा- दिसादस्प जे प्राण ते आयु माण उे अने अनतसुखरूप नि /माणयी बिपरीत जे असपमान खेदनिहरतिसुप भाण छे ते. दर हु




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