कब तक पुकारू | Kab Tak Pukaroon
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.91 MB
कुल पष्ठ :
671
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व सक पुकार श्श कहा तू गिरकर मिट्टी में मिल जा अभागे तूने इस धरती पर रहने वालो को कभी चैन से नही रहने दिया । थी प्रुकारा सुपराम च कहता है 1 सुयराम ने मेरे दोनों हाय पकड़कर कहा मैं सच कहता है वीघू भंया जिस दिन इसकी सीव खुदी थी उस दिन इसमें नर-वलि दी गई थी क्योंकि नव प्रेत वो चौकीदार बना देने का काय्रदा था। जो जिंदे आदमी की हड्डियों पर सडा किया है वह वया कभी आदमी को चैन दे सकता है ? इस किसे में भाई-भाई का नहीं रहा । इसी के लिए भाभी ने देवर को जहर दिया । इसी किले में देवर के मरने पर देयर की गर्भ वाली बहू रातोंरात भागकर जंगल में छिपी जीर ठवुरानी को एक जोगी मे जंगल में जापा कराया । फिर उसे वह नटों में छोड़ 1 गया कयी कि नटों में कोई जान का सतरा नहीं था । जब बच्चा दो वरस का हो गया तो बह ठकुरानी नाचने वाली बनकर बदला पेने थर्ड और अभा गिन कहा तो वदता लेने आाईथी कहा खुद शिकार हो गई । जेठ नही जानता था पर अपने भाई की बहू पर जाशिक होगया । ठवुरानी की चाह पूरी होने को थी वह उसका यून कर देती पर एक अफसोस रह गया कि वह एक दरवान की मुहब्बत में फस गई । राजाकों मादूम पड़ा तो उसने ठदुरानी को हीरीं की मोतियों की लड़ों की पोशाक भेजी । ठकुरानी ने उन्हे चवकी में धरकर पीसकर चुरा करके राजा को भेज दिया और खुद दरबान के साथ भाग निकली पर दरवान पकड़ा गया और ठडुरानी मार डाली गई । दरवान ने कैद से छूटकर वच्चे को पाला। बहू बच्चा बड़ा हुआ तो नट बुना । फिर ? मैंने कहा । फिर सुसराम हिल उठा । उसकी आवाज काप उठी 1 उसने कहा मै उसी खानदान का आखिरी ठाकुर हू बाबू भैया । जव नटों के यहां रहकर ठकुरानी एक चार पड़ोस के ठाबुरो के यहां गई तो उन्होंने कहा--सूने नटों का छूआ हुआ खामा है अब हम तुझे वापस नहीं ने सकते । उस दिन उसने कहा था--तो किला मेरा है। इसे कंसे भी जीतना ही होगा । यही मेम ने कहा था आाज चदा भी कह रही है। मैं आवेश में था । सुखराम की अन्तिम बात ने मुझे किसी अजीव कहानी की तरफ मोड़ दिया था । मैं गए ना चाहता था ओर सुखराम ने मूझे सुनाया 1 मैं सुनता रहा - युनता रहा सुवकर मैने सोचा इसे मैं अवश्य लियूंगा। यू मनुष्य की विवशता की वित्तनी ज्वूलत गाथा है और कितनी आइचयूज़ आइचयूंज़न का ढ नही-नही बायूं भैया सुखराम ने कहा मेंने कभी दिसी गट की दि को
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