ओम प्रणव रहस्य | Om Pranav Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ड़ ) यदि तुम आत्मा तक पहुंचना चाहते हो तो अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, बिज्ञानमय ओर आानत्दुमय कोशों के पाँच परदों को फाड़ डालो | ऐ संसार के भोले प्राणियों ! अपनी इस लम्तरी अज्ञान की निद्रा से जागो । आत्मा का ज्ञान प्राप्त करो । ऐ मिथ्या-संसार में बिचरनेदाढे मनुष्यों | शाइवत झान्ति के निवासस्थान, अनस्त आनन्द और शक्ति के स्रौत, जीवन के दाता; प्रकाश ओर प्रेम की गंगा को मोर चापिस जाओ । अपने मन को आत्मिक विचारों से परिपूर्ण कर दो । अपनी भावनाओं को पित्रना और दिव्यता से सराधोर कर दो । शरीर के रोम-रोम में प्रकाश की ठह्रें बहने नि का संगीत अन्तर से निकछने दो | ओइपू का तिरन्तर जप; सगीत भर ध्यान वेदाल्तिक साधना का झा्रइयक भाग हे । तुरीयावस्था, न्रह्म, आत्मा भीर मोइमू एक ही है। ओ३पू समस्त वेदों के सार का प्रतोक है । ओोइमू अदूसुत्त दाक्तिं का खज़ाना है। वेदान्तपथ पर चलनेवाले पुरुपों को श्रद्धा भीर भाव के साध निरन्तर ओइम का जप करना चाहिए और इस हएदस्यवादी क्रिया के अस्पास द्वारा अपार आानन्दु उठाना नवाहिए । न बार-बार भोइमू का- यद्य गाओ । अपने हृदय मौर आत्मा को भोइमू के संगीत की ओर सदा ठगाए रक्‍्खो । जीवन की समस्त क्रियाएं पवित्र प्रणच की पूजा के रूप में करो । सदा शोइ्पू में विचरो । सोशल को अपने निवासस्थान का केन्द्र-विस्डु बना




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